उदय प्रताप सिंह   (उदय प्रताप जनार्दन सिंह)
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ग्राम व पोस्ट- मदारभारी, जिला - अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश
Joined 23 January 2018


ग्राम व पोस्ट- मदारभारी, जिला - अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश
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🏵️ श्रीराम वाल्मीकि संवाद अयोध्या काण्ड 131🏵️
श्रीरामजी ने बनवास की
यात्रा के समय वाल्मीकिजी से पूँछा --
हे महर्षि ! मैं कहां रहूँ ? तो बाल्मीकि जी कहा --

जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु ।
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु ।।

भावार्थ:- हे श्रीराम ! जिसको आपसे कभी भी कुछ नहीं चाहिए और जिसका आपसे स्वाभाविक प्रेम है, आप उसके मन में निरंतर निवास कीजिए,
वह आपका अपना घर है ।

संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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🏵️ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १२/१२ 🏵️

श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाध्यानं विशिष्यते ।
ज्ञानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ।।
--बारहवें अध्याय का बारहवां श्लोक

शांकरभाष्य: निस्संदेह ज्ञान श्रेष्ठतर है !
परन्तु किससे ?
अविवेकपूर्वक किये हुए अभ्यास से ; उस ज्ञान से " ज्ञानपूर्वक ध्यान श्रेष्ठ है ; और ( इसी प्रकार ) ज्ञानयुक्त ध्यान से भी, कर्मफल का त्याग अधिक श्रेष्ठ है।
-- श्रीमद्भगवद्गीता ( शांकरभाष्य )

संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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🏵️ श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १३ श्लोक संख्या ११ 🏵️
यदि कोई व्यक्ति श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा, पाँचवाँ और तेरहवाँ अध्याय कंठस्थ करके गुरूमुख से इसे अच्छी तरह से समझ ले, तो उसे तत्त्वज्ञान् होने में तनिक भी संदेह नहीं रहेगा -- परम् पूज्य स्वामी विश्वात्मा नंद सरस्वती जी महाराज का कथन

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् ।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ।।
अर्थ:- अध्यात्म ज्ञान में नित्य निरंतर रहना, तत्त्वज्ञान के अर्थ रूप परमात्मा को सब जगह देखना, यह तो ज्ञान है और जो इसके बिपरीत है, वह अज्ञान् है -- ऐसा कहा गया है।

विशेष बात :-- सातवें श्लोक से ग्यारहवें श्लोक ( अमानित्वम् से तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् ) तक ज्ञान के बीस साधन बताए गये हैं। ये सभी साधन देहाभिमान मिटाने वाले होने से और परमात्मतत्त्व प्राप्ति में सहायक होने से -- ज्ञान नाम से कहे गये हैं ।
-- साधक संजीवनी से !
संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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🏵️ श्रीराधाकृष्णजी की आरती ( नारायणदासजी भक्तमाली द्वारा रचित ) 🏵️

दिव्यऽ दम्पती की आरतीऽऽ, उतारोऽऽ हेऽऽ अलीऽऽऽ!२
👉भजो नन्द जी के लालऽऽऽ, वृषभानु कीऽ ललीऽऽऽऽ!२दिव्यऽ दम्पती की आरती०

कनकऽ मणि चन्द्रिकाकीऽ उज्जवलऽ प्रभाऽऽऽ!२
पीतऽ कटि पटऽ रहेऽऽऽऽऽ, मनको लुभाऽऽऽऽऽऽ!२
👉कटि करधनी की शोभाऽऽ, अति लगऽतीऽ भलीऽऽ !२ दिव्यऽ दम्पती की आरती०

अति रुचिरऽ गंभीरऽऽऽ, मुख सुन्दरऽ साँवलऽऽऽ!२
उर कौस्तुभऽ श्रीवत्सऽऽऽ, पदऽ उभरे कमलऽऽऽ!२
👉 बनमालऽ उरऽ राजेऽऽऽऽऽ, कंबु कंठ त्रिवलीऽऽऽऽ!२ दिव्यऽ दम्पती की आरती०

दिव्य कांति गोरऽ साँवलऽऽऽ, चन्द्रऽ को घटाऽऽऽ!२
घुघुरारीऽऽ अलकावलीऽऽऽऽ, सुन्दरऽ छटाऽऽऽऽ!२
👉द्वितिऽऽ कुण्डलऽ करण सोहेऽऽ, कांति उजलीऽऽऽ!२ दिव्यऽ दम्पती की आरती०

चितवनिऽ मुसुकानिऽऽ, प्रेमऽऽ रसऽ बरसेऽऽऽ!२
हियऽ हरषिऽ नारायणऽऽ, चरणऽऽ परसेऽऽऽऽ!२
👉 जयजयऽऽ कहिदेव बरऽसेऽऽ, सुमनऽऽ अंजलीऽऽऽ!२ दिव्यऽ दम्पती की आरती०
👉भजो नन्द जी के लालऽऽऽ, वृषभानु की ललीऽऽऽऽ!२ दिव्यऽ दम्पती की आरती०

संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह



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🏵️ शिवजी की महिमा 🏵️
बंबंबं भोलेशंकरऽऽ ! गलेमें नागभयंकरऽऽ ! शिवजी घट-घटके अंदरऽऽ !
👉होऽऽऽऽ! काजऽ सँवारेभोले ! काजऽ सँवारे मेरे सारेऽऽऽऽ!
शिव त्रिपुरारीऽऽऽ! भोले भंडारीऽऽऽ! महिमा तुम्हारीऽऽऽ!
विदित है विश्व के अंदरऽऽऽ! बंबंबं भोलेशंकरऽऽ! गलेमें नागभयंकरऽऽ !
शिवजी घट-घटके अंदरऽऽ !

महिमा तुम्हारी भोलेऽऽऽ, सऽबसे निराऽऽलीऽऽऽऽ!
खाली न लौटा कोई सवाली + खाली न लौटा कोई सवाली!
👉होऽऽऽऽ! जो भी माँगा है भोले, सब कुछ पाया है, तेरे द्वाऽरेऽऽऽ!२
भक्तों के प्याऽऽरेऽऽऽऽऽ! भोले-भालेऽऽऽऽऽऽ ! सबसे निराऽऽलेऽऽऽऽऽऽऽ!
महादानी हैं शंकरऽऽऽ, बंबंबं भोलेशंकरऽऽ! गलेमें नागभयंकरऽऽ !
शिवजी घट-घटके अंदरऽऽ !

शिव शिव नाऽमऽऽऽ, हृदयसे बोलोऽऽऽऽऽऽ!२
मनमंदिर का पर्दा खोलो + मनमंदिर का पर्दा खोलो !२
👉होऽऽऽऽऽ! काशीमें जोऽऽऽऽऽऽ, तन त्यागेऽऽऽऽऽऽ! बिन माँगेऽऽऽ!
मुक्ति देते हैं शंकरऽऽऽ!२ बंबंबं भोलेशंकरऽऽ! गलेमें नागभयंकरऽऽ !
शिवजी घट-घटके अंदरऽऽ !
संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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🏵️ आत्माभ्यास 🏵️
* ज्ञानबल की आवश्यकता है, अज्ञाननिवर्तकता के लिए *

दृश्यं नास्तीति बोधेन मनसो दृश्यमार्जनम् ।
सम्पन्नं चेत् तदुत्पन्न परा निर्वाणनिर्वृतिः ।।

" दृश्य जो है वह द्रष्टा की चमक-दमक है "
👉" दृश्य आत्मा है और द्रष्टा अलग है " इसके मूल में द्रष्टा का अज्ञान् ही है।

द्रष्टा और दृश्य में 'द्रष्टा के वस्तु स्वरूप' का जो अज्ञान् है। वही विभाजन रेखा है। ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेय के समान नहीं होते। यह कोई बुद्धि की वृत्ति नहीं है। 'दृष्टि' बुद्धि की वृत्ति होने से ज्ञाता - ज्ञान - ज्ञेय की तरह 'दृष्टि' दृष्टा और दृश्य की
पृथकता का हेतु नहीं है। अपितु -
👉 "अद्वितीयता का अज्ञान् ही दृष्टा और दृश्य की पृथकता का हेतु है "

"दृश्यं पृथक् न अस्ति इति - द्रष्टा से दृश्य पृथक् है ही नहीं ! ऐसा चिन्तन करने से द्रष्टा और दृश्य के पृथक् होने के भ्रम का मार्जन होता है।

परम् पूज्य स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती जी महाराज के प्रवचन् भाष्य "विवेक कीजिए " के पेज ८१ तथा यूट्यूब वीडियो भाग.८ से
संकलन: टीकम पचौरी जी

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🏵️ रामजी की कठिन अबिद्या माया 🏵️

ये माया तेरीऽऽऽ! बहुतऽ कठिनऽ हैऽऽ राऽऽमऽ !२
👉दुःख में सुख दिखलाके बनातीऽऽऽ!२
बड़े बड़ोंऽऽऽ को गुलाऽऽऽमऽ+ये माया तेरीऽऽऽऽऽ०

रक्त माँस हड्डी के ढेर पर मढ़ा हुआ है चाऽऽऽमऽ !२
👉देख उसी की सुन्दरताऽऽऽ!२ होजाती नींंऽऽद हराऽऽमऽ+
ये माया तेरीऽऽऽऽऽ०
करता नित्य विरोध क्रोध का, कहता बुरा परिणाऽऽऽम !२
👉 होता क्रोधित स्वयं तो होतीऽऽऽ !२ बाणी बिना लगाऽऽऽमऽ+
ये माया तेरीऽऽऽऽऽ०
मृत्यु देखता है औरों की, रोज सुबह औ शाऽऽऽमऽ !२
👉भवन बनाता ऐसे जैसेऽऽऽऽ!२ हरदमऽ यहाँ मुकाऽऽऽमऽ+
ये माया तेरीऽऽऽऽऽ०
👉 राजेश्वर प्रभु तुम करुणा निधि, मायापति है नाऽऽऽमऽ!२
👉 नाथ निवेरो अपनी मायाऽऽऽऽ!२ ये जीवऽ लहेऽऽऽ विश्राऽऽऽमऽ+
ये माया तेरीऽ०
संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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सिरीरामकी गलीमें तुमऽ जानाऽऽऽऽ, वहाँ नाचते मिलेंगे हनुमानाऽऽऽ!२
वहाँ नाचते मिलेंगे हनुमानाऽऽऽ!२ वहाँ नाचते मिलेंगे हनुमानाऽऽऽ!२
सिरीरामकी गलीमें तुमऽ जानाऽऽऽऽ, वहाँ ०

इनके तनमें हैं राऽऽमऽ, इनके मनमें हैं रामऽ !२
इनकी आँखों से देखो, कण-कण में हैं रामऽ !२
👉सिरीरामका ये हो गया दिवानाऽऽऽ, वहाँ नाचते मिलेंगे हनुमानाऽऽऽ!२
सिरीरामकी गलीमें तुमऽ जानाऽऽऽऽ, वहाँ ०

इनसे कहना रामऽ-रामऽ, ये कहेंगे रामऽ-रामऽ !२
कुछ भी सुनते नहींऽऽ + बस सुनेंगे राम नामऽ !२
👉सिरीरामका ये हो गया दिवानाऽऽऽ, वहाँ नाचते मिलेंगे हनुमानाऽऽऽ!२
सिरीरामकी गलीमें तुमऽ जानाऽऽऽऽ, वहाँ ०

इतनी सेवा वो बनवारी करने लगे !२ इतनी भक्ति वो रामजी की करने लगे !२
इनके सीने में सीताराम रहने लगे !२
👉 इस कहानी को जानता जमाऽनाऽऽ वहाँ नाचते मिलेंगे हनुमानाऽऽऽ!२
सिरीरामकी गलीमें तुमऽ जानाऽऽऽऽ, वहाँ ०
संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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🏵️ जय बजरंगबली 🏵️
रघुबर के सेवक पुराने बजरंगी ! रामनाम के हैं दिवाने बजरंगीऽऽऽ!२
पैरों में घुघुरूऽऽऽ! हाथोंमें ले करताऽऽल !
नाचें छमाछम हो मस्ताने बजरंगीऽ!रामनाम के हैं दिवाने बजरंगी!२
रघुबर के सेवक०
राऽऽमका गुणगाऽऽन जो भी भक्त गाते हैंऽ! हनुमाऽन की किरपा सदा वो-
भक्त पाते हैंऽ!२
रघुपति राघव राजाराम, पतितऽ पावनऽ सीताराम !२
सीताराम जय सीताराम, सीताराम जय सीताराम!२
राऽऽमका गुणगाऽऽन जो भी भक्त गाते हैंऽऽऽ०
👉 चिन्ता में आए साथ निभानें बजरंगी ! रामनाम के हैं दिवाने बजरंगीऽऽ!२
रघुबर के सेवक०
बीरों में सिरमौर हैं ये, भक्तों में सिरमौऽऽरऽ !२
ऐसाऽऽ अनोखा देऽऽवजो भी, होगा ना कोइ औऽऽर !२
करके दिखाएं, जोकुछठाने, बजरंगी, रामनाम के हैं दिवाने बजरंगीऽऽऽ!२
रघुबर के सेवक ०
पवनतनय संकटहरण मंगलमूरति रूऽऽपऽ !२
रामलखन सीताऽऽसहितऽ हृदय बसहु सुरभूऽऽप !२
हमरे हृदय में बइठें, जैसे बइठैं बजरंगी ! रामनाम के हैं दिवाने बजरंगीऽऽऽ!२
संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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🏵️ श्रीराम-सीता का शुभ विवाह १२/०५/२०२५ 🏵️
आज श्रीराऽऽमऽसीताऽऽका, शुभविवाह है !
अजी वाह ! -वाह ! है, अजी वाह ! -वाह ! है !२
मुद्दत से आया समय ऐसा आला - मुहूरत को बिधि ने स्वयं ही निकाला !२
👉तिथि शुकुल पंचमी !२ अगहन मास है, अजी वाह-वाह है।२
आज श्रीरामसीता०
घोड़े पे बैठा बर बाँधे हुए सेहरा - देखा किसीने क्या सुन्दर ये चेहरा !२
👉टिकी दूल्हे के मुँह पे !२ सबकी निगाह है, अजी वाह-वाह है।२
आज श्रीरामसीता०
घर-घर पताका, बँधे बँदनवारे- मंगल कलश हैं सजे सबके द्वारे !२
👉आज मिथिला के कण-कण में, उत्साह है, अजी वाह-वाह है।२
आज श्रीरामसीता०
देवताओं तुमसबतो, मदमें न फूलो- शादी श्रीरामजीकी यह भी भूलो !२
👉कर दिया सबको शिवजी ने आगाह है, अजी वाह-वाह है।२
आज श्रीरामसीता०
निश्चिंत होके वहीं जगमें जीता - जिसके हों रखवाले श्रीराम सीता !२
👉अपने राजेश की उनको परवाह है, अजी वाह-वाह है।२ आज०
संकलन: उदय प्रताप जनार्दन सिंह

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