** मानस चिंतन **
फूलहिं फरहिं न बेंत ।
जदपि सुधा बरसहिं जलद ।।

मूरख हृदय न चेत ।
जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम ।।

- उदय प्रताप जनार्दन सिंह