नज़र फ़रोग-ए-मेहर-ओ-माह ज़ाहिर है
बला-ए-जाँ है वो, क़ातिल-निगाह ज़ाहिर है
वो लब-ए-ख़ुश्क पे बोसा-लबी रहम का है
मेरे लबों पे निशाँ सुर्ख़-साह ज़ाहिर है
मिले ख़ुदा भी जो उनसे ख़ाना-वीरानी में
फ़िराक़े-यार, हवादिस-ओ-दाह ज़ाहिर है
जवाज़ गोश पे गेसू का बाद से रिश्ता
हुजूमे-ग़म है ये, परवाह-थाह ज़ाहिर है
के फ़ेहरिस्त पे मेरी, है नाम बस तेरा
हनूज़ कह दो फ़क़त 'हाँ', निक़ाह ज़ाहिर है
धड़क-ए-क़ल्ब-ओ-जुम्बिश-ए-लब-ओ-चश्म-ए-नम
ख़ुदा को देख, छूने का गुनाह ज़ाहिर है
लगा के देख लो नुक्ता जबीं पे तुम "बदनाम"
ग़ज़ल-ए-हुस्न-ए-जानां पे 'वाह' ज़ाहिर है
-Udit //अनुशीर्षक पढ़ें
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