तू अपनी अहमियत का अंदाज़ा कुछ ऐसे लगा,
मेंने टूटे दिल को समझाया है फिर इश्क करने को...-
कुछ बोझ ज़िम्मेदारी का समझ ले,
या कसूर मेरी नादानी का समझ ले..
कुछ मिले पल सुकून के,
तो समझाएंगे हाल ऐ दिल...
वर्ना तू भी खामोशी मेरी,
मेरी नाकामी समझ ले....-
अपने ही शहर में, मुसाफिर की तरह आया हूँ..
जो कहते हैं, क्या ही बदल देता है समय...
कभी अपनों से भरा बटुआ था मेरा,
आज देख खाली हाथ आया हूँ....-
हम भी लड़ें हैं हालातों से,
ये लफ़्ज़ नहीं है, महज़ किताबी..
तुम देते हो दुहाई जिनकी चमक की,
टूटते देखे हैं, हमने वो तारे..
मुसीबतों का सूरज चमके चाहे जितना,
अंत में पड़ेगा उसे ढलना...
समय अच्छा हो या बुरा,
उसका काम है बस चलना....-
कुछ थे शौंक, जो डह गए समय की रफ़्तार में..
मैंने दिल को तसल्ली, कुछ यूँ दि है..
तेरे ज़िक्र से लडने की....-
अभी हारा नहीं मैं,
मेरी मंज़िल भले दूर है..
अभी वक्त नहीं ठहरने का,
दिल अभी मेहनत में चूर है..
इंतेज़ार क्यों करे,
सुबह की रोशनी का.. -2
अंधेरों में चमकाना जिन्हें,
किस्मत का कोहिनूर है....-
तू आज़मा ले, इन्तेहाँ मेरे इंतजार की,
सुना है, उम्र बहुत है एक तरफा प्यार की....-
क्यों भरोसा करता है दिल,
तू सुनी सुनाई बातों पे..
तूने ज़ख्म भी उनसे खाए,
जो मलहम बांटते फिरते है बाजारों में...
जिंदगी साथ बिताने का इरादा था जिनका,
वो लम्हों के मेहमान निकले..
दुनिया देती थी,जिनकी बुनियाद की मिसालें...
वो जनाब रेत का मकान निकले....-
उम्रों से समेटे वादे थे,
बहुत मज़बूत तेरे इरादे थे...
कांच की तरह टूटा,
हर लफ्ज़ तेरा -2
सच बता,
किरदार कमज़ोर था तेरा...
या रिश्ते की बस इतनी कहानी थी....-
कभी इत्मीनान से करेंगे गुफ्तगू,
हम तेरे इल्जामों पे...
अभी गम कुछ ज़्यादा है,
मेरे पैमाने में....-