वैसे बरामदे में पड़े पुराने स्कूटर की तरह तुम आज भी मेरी जिंदगी हो ,
जैसे तुमसे बात नहीं होती वैसे ही उसे भी अब चलाने का मौका नहीं मिलता,
फिर भी जैसे दिल से तुम निकलती नहीं ,
वैसे ही उसे भी घर से निकालने का जी नहीं चलता मेरा ,
दोनों बहुत खास हो ,
लेकिन एक ने करवट बदल ली ,और किसी और ने जगह ले ली ।
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वैसे बरामदे में पड़े पुराने स्कूटर की तरह तुम आज भी मेरी जिंदगी हो ,
जैसे तुमसे बात नहीं होती वैसे ही उसे भी अब चलाने का मौका नहीं मिलता,
फिर भी जैसे दिल से तुम निकलती नहीं ,
वैसे ही उसे भी घर से निकालने का जी नहीं चलता मेरा ,
दोनों बहुत खास हो ,
लेकिन एक ने करवट बदल ली ,और किसी और ने जगह ले ली ।
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तुम आज भी मेरे लिए खास हो ,
सुबह तेरे आंगन में तुम्हारी पायल की आवाज़ नहीं आती ,
गुम हो गई हो तुम कहा ?
सुबह उठकर बैठता हूं तो मेरा तकिया गीला मुझे तुम्हारी याद दिलाता हैं ,
तुम्हारी आंखों में जो नशा था वो मेरे लिए काफी था ,
तुम चली गई हो तो कोई नशा अब खास नही लगता ,
तुम आज भी मेरे लिए खास हो ,
गुम हो गई हो तुम कहा ?!-
લખું એક કવિતા તો સરનામું મારું આવે ,
એ શબ્દોમાં મારા વિચાર આવે ,
ગણું એના અક્ષર તો પરિણામ મારું આવે ,
હવે શું કહું કવિતાથી હું છું ને કવિતા થી જ મારી ઓળખાણ આવે .-
" ब्याह गई लड़की यूपीएससी के पीछे नहीं भागती ,
उसका बस्ता छूट जाता हैं समझी ?! "
दोपहर की धूप में मिर्ची सुखाते हुई बहु को देखकर उसकी चाची सा बोली ।
" अब क्या बताई चाची जी यूपीएससी में किताबी ज्ञान ही आता तो दिल्ली में बैठे सारे आज अफसर होते ,
ये मिर्ची भी शिक्षा देती हैं और ये शादी भी ,
यूपीएससी हमारे जीवन की परीक्षा हैं ,
किताबो की नहीं । "
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बचपन गया तब क्या पता था ,
क्या होता हैं धर्म महजब ?!
हम तो खेलते थे साथ में ,
कभी गौरी व्रत में वो आती थी सज के मेरे घर पे ,
कभी में जाती थी उसके घर ईद पे सहरी खाने
अब लोगो ने धर्म का मोह दिखाया हैं ,
हमारी दोस्ती पर ,
पर फिर भी दिवाली ईद साथ में रखते हैं हम ।
रमजान मुबारक
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कौनसी किताब में लिखा हैं की में सुंदर हूं ,
सुंदरता की व्याख्या में पढ़ना चाहती हूं ,
बचपन में सब बोलते थे तुम शयानी हो गुड़िया ,
मेरी मां को छोड़कर ,
वो मुझे डांटती थी कभी किसी अजनबी को देखकर मुस्कराने को ,
कभी मारती थी मुझे खुलेआम हरकतें करने पर ,
मेरी मां मुझे मनचली बोलती थी ,
पापा धूनी बोलते थे ,
मेरे चाचा मुझे अपने ख्यालों में गुमने वाली मस्तानी बुलाते थे ,
लेकिन कोई सुंदर नहीं कहता था ,
कभी मिला कोई दोस्त तो हुआ विजातीय आक्रशन लेकिन
फिर वो बचपन वाला प्यार उम्र के साथ कैसे जवान होता !
मुझे वो परिभाषा चाहिए सुंदरता की ,
वो मिली ही नहीं ,
बड़ी हुई तो ,
पता चला सुंदरता दिखावे में हैं ,
तुम अव्वल ही आना ,
तुम शरीर से ठीक होना ,
तुम रंग से गोरी होना ,
सुंदरता की पहचान हैं ,
लेकिन मुझे लगता हैं की सुंदरता अपने विचारो से हैं ,
रंग , रूप तो मिट जायेगा लेकिन सुंदरता तुम्हारे नाम से सब जगह फैलेगी ,
छोड़ो बात तुम मुझे लगता हैं में सुंदर हूं ,
मन से सुंदर हूं ।
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अब मनमानियां कहा चलती हैं साहब ,
बस घर को आना ,
खाना पकाना ,
सुबह थक से फिर काम पे जाना ,
अब मनमानियां नहीं चलती हैं साहब-
हम चले आए थे उसके पत्थर से दिल में
जगह खाली छोड़कर ,
दिल तो आज भी पत्थर से
सिवा हमारा प्रेम का हिस्सा छोड़कर-
ફરી કિનારે આવી કોક ની જીંદગી ડુબાડી ગઈ ,
કોક ની માવડી ને માવતર આજે રુંઝાઈ ગઈ ,
હૈયું હરખથી ગયા હતા બાળ જોત જોતામાં માતમ છવાઇ ગઇ ,
કાળજે કઠણ હર્દય રાખ્યું છે વડોદરા ની સંસ્કારી નગરી આજે રુદને રોવાઈ ગઈ ,
હૈયેખેમ રાખજો ભગવાન ભૂલકાઓ ભૂલે પડ્યા ને ,
અમારી જિંદગી છીનવાઈ ગઈ-