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मैं केवल तुम्हें प्रेम देना चाहती हूँ इस जहां की सारी पीड़ाएँ मैंने अपने हिस्से रख ली हैं
Joined 14 January 2018


मैं केवल तुम्हें प्रेम देना चाहती हूँ इस जहां की सारी पीड़ाएँ मैंने अपने हिस्से रख ली हैं
Joined 14 January 2018
9 HOURS AGO

मैं हमेशा शांत नही थी,
तुम हमेशा ऐसे नही थे,

शायद !
अपनी अपनी सीमाओं
के समीकरण में प्रेम
करने पर ऐसा होता होगा ।।

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13 HOURS AGO

कि चलो मुझे गुनगुनाओ तुम,
ऐसे होंठो से लगाओ तुम ।।

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20 SEP AT 19:23

सुख़न ए मीर की आदत लगी है खूब हमें,
रेख़्ता जब से हमें वो बता गया लड़का ।।

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19 SEP AT 19:20

तुम्हारी कल्प क्रियाओं में
बस स्वास्तिक होना है मुझे

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18 SEP AT 14:32

एक पुराने पते पर,
पुराने खंडहर में,
पुराने से पेड़ की
पुरानी हो चुकी शाखों पर,
पुराना सा एक वादा
लिखा देखा
For ever "

आज फिर तुम याद आये।।

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17 SEP AT 11:55

तुम्हें पढ़ना था
मेरी खिड़कियों पर रखा मौन,
तुम्हें ही आना था
दहलीजों को लांघ कर,
हर बार तो मैं नही कर सकती ।।

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16 SEP AT 18:14

एक दिन
मैं उगूँगी तुम्हारे
ह्रदय में,
फूल बनकर,
ओ पाषाण
बने देवता ।।

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13 SEP AT 19:26

मैं नदी हो रही हूँ
धीरे-धीरे, बहती शांत, अनवरत
इस प्रतीक्षा में कि किसी दिन
कोई केवट
तुम्हें लाएगा मेरे पास ।।

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11 SEP AT 9:53

हाँ "किंत्सुगी" सी हूँ मैं

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8 SEP AT 14:12

तुम्हारे और मेरे मध्य
ये प्रांतर* भूमि नही है,
अँगुलभर की प्रतीक्षा है
जिनमें हमारे प्रेम-पत्र
विचरते रहते है ।।

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