करें क्या आँखों में उतरी बेहयायी का, कायदों की कद्र किसे,जो वो गुजरें गलियों से, पलकों को झपकाने का सब्र किसे। -
करें क्या आँखों में उतरी बेहयायी का, कायदों की कद्र किसे,जो वो गुजरें गलियों से, पलकों को झपकाने का सब्र किसे।
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क्या हो उस पर किसी विष का प्रभाव, जिसकी धमनियों में 'हलाहल' का प्रवाह हो? किस शक्ति के समक्ष वह डिगे, जो स्वयं अपनी पृथ्वी का 'वाराह' हो? 'अमोघ' से पूर्ण जिसकी तूणीर, गंभीरता से क्यूँ ले वह शत्रुओं की ललकार को? जिससे टकरा होतीं शिलाएँ चूर्ण, वह क्यूँ रोकने लगा असि के प्रहार को ?मद-लोभ-दंभ का औचित्य क्या, जिसने 'दधीचि' सा कर दिया हो त्याग अपने सर्वस्व का? जिसके पग भरने से 'इन्द्रासन' हो डोलता, वह क्यूँ दे प्रमाण अपने वर्चस्व का? -
क्या हो उस पर किसी विष का प्रभाव, जिसकी धमनियों में 'हलाहल' का प्रवाह हो? किस शक्ति के समक्ष वह डिगे, जो स्वयं अपनी पृथ्वी का 'वाराह' हो? 'अमोघ' से पूर्ण जिसकी तूणीर, गंभीरता से क्यूँ ले वह शत्रुओं की ललकार को? जिससे टकरा होतीं शिलाएँ चूर्ण, वह क्यूँ रोकने लगा असि के प्रहार को ?मद-लोभ-दंभ का औचित्य क्या, जिसने 'दधीचि' सा कर दिया हो त्याग अपने सर्वस्व का? जिसके पग भरने से 'इन्द्रासन' हो डोलता, वह क्यूँ दे प्रमाण अपने वर्चस्व का?
गुनगुनी धूप, मीठी हवाएँ और गुलाबी शामें, हर दिल मुरीद था, बहारों की नज़ाकत का, समझ से परे है, बयारों की यह तब्दीली आँधियों में,बहारों!! यूँ अपनी हया की बे-क़दरी सही नहीं। -
गुनगुनी धूप, मीठी हवाएँ और गुलाबी शामें, हर दिल मुरीद था, बहारों की नज़ाकत का, समझ से परे है, बयारों की यह तब्दीली आँधियों में,बहारों!! यूँ अपनी हया की बे-क़दरी सही नहीं।
जो हुईं आँखें नम, तो ज़बां पे पड़े ताले भी हट गए, बिखेर कर हमारी ज़िंदगी, वो हमारे आगोश में सिमट गए। -
जो हुईं आँखें नम, तो ज़बां पे पड़े ताले भी हट गए, बिखेर कर हमारी ज़िंदगी, वो हमारे आगोश में सिमट गए।
कुछ गलतियाँ मेरे हिस्से की, कुछ भूल तुम्हारी तरफ से,कुछ पुराने नगमें, जो गूँजते थे तुम्हारे कानों में, कुछ नासमझी मेरी, तुम्हें नयी धुन सुनाने की, कुछ वक़्त जो बीता, फिजूल की बहसों में, कुछ लफ्ज जो घुट गए, बंद लबों तले,कुछ रास्ते, जिन पर साथ चलना आसान नहीं,कुछ कहानियाँ, जिन्हें मयस्सर हुआ सिर्फ अधूरापन। -
कुछ गलतियाँ मेरे हिस्से की, कुछ भूल तुम्हारी तरफ से,कुछ पुराने नगमें, जो गूँजते थे तुम्हारे कानों में, कुछ नासमझी मेरी, तुम्हें नयी धुन सुनाने की, कुछ वक़्त जो बीता, फिजूल की बहसों में, कुछ लफ्ज जो घुट गए, बंद लबों तले,कुछ रास्ते, जिन पर साथ चलना आसान नहीं,कुछ कहानियाँ, जिन्हें मयस्सर हुआ सिर्फ अधूरापन।
I did't like the design of the wedding-ring she bought. -
I did't like the design of the wedding-ring she bought.
यह बेचैनी घटी नहीं , हकीक़त अपनाने के बाद, कि सारा शहर अब बेगाना, सिर्फ़ एक शख्स के जाने के बाद। -
यह बेचैनी घटी नहीं , हकीक़त अपनाने के बाद, कि सारा शहर अब बेगाना, सिर्फ़ एक शख्स के जाने के बाद।
तुम भरते हो दंभ कि तुम अवगत हो पीड़ा और वेदना से, क्या पढ़ पाते हो तुम, एक मुस्कराहट के पीछे छिपे संताप को?क्या आता है तुम्हें सौम्यता के छद्मावरण में भी शोक के अतिरेक को भांपना?क्या सम्भाल सकते हो तुम नियति की क्रीड़ाओं द्वारा आहत व्यक्ति को?मित्र! यदि तुम्हारे उत्तरों में केवल "ना " है, तो समझ जाना कि जीवन जीने की कला को तुमने साधा नहीं अभी। -
तुम भरते हो दंभ कि तुम अवगत हो पीड़ा और वेदना से, क्या पढ़ पाते हो तुम, एक मुस्कराहट के पीछे छिपे संताप को?क्या आता है तुम्हें सौम्यता के छद्मावरण में भी शोक के अतिरेक को भांपना?क्या सम्भाल सकते हो तुम नियति की क्रीड़ाओं द्वारा आहत व्यक्ति को?मित्र! यदि तुम्हारे उत्तरों में केवल "ना " है, तो समझ जाना कि जीवन जीने की कला को तुमने साधा नहीं अभी।
THE PRESENCEYou feel a presence, even when you're alone,It seems you are being watched, by eyes unknown,You feel the chills even in the swelter of the summer,You are by yourself and still hear a faint murmur,Here comes the night and you decide to rest,Only to wake up incapacitated by something heavy on your chest,The asphyxiation ensues and your face is inflamed,Soon the onslaught relents and your breath is reclaimed,Finally serenity dawns and you sit unnerved and aghast,You thank the Gods and pray this encounter to be the last. -
THE PRESENCEYou feel a presence, even when you're alone,It seems you are being watched, by eyes unknown,You feel the chills even in the swelter of the summer,You are by yourself and still hear a faint murmur,Here comes the night and you decide to rest,Only to wake up incapacitated by something heavy on your chest,The asphyxiation ensues and your face is inflamed,Soon the onslaught relents and your breath is reclaimed,Finally serenity dawns and you sit unnerved and aghast,You thank the Gods and pray this encounter to be the last.
The Art of Cicumventing the Circumstances and showing up always. -
The Art of Cicumventing the Circumstances and showing up always.