वक़्त यूं ही बीत रहा था,
कुछ उनके दिल में था,कुछ मेरे।
हिचकिचाहट सी थी कुछ,
कुछ बेतुके से सवाल चल रहे थे
नज़रे दिलों का जायज़ा ले रही थी,
उन्हें भी सच पता था,हमें भी,
फिर क्यूं झिझक रहें थे हम
खोने का डर था,
या पाकर कहीं खोने का।।
नज़रें बार बार उनकी कुछ कह रही थी,
मानो पहल करने का इशारा हो,
फिर आख़िर हमने ही चुप्पी तोड़ी,
पहल की,सच कहा,
उन्होंने पलके झुकाई और चुप रही,
शायद हमें जवाब तो मिल गया था,
लेकिन कुछ और देर बैठा रहा,
क्या पता,आंखों का सच जुबां से अलग हो।।
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