बिछड़ कर उनसे अब हर शब हमारे अश्क़ बहते हैं
यही कुछ हाल उनका है कि वो भी इश्क़ करते हैं
वो मुझसे दूर रहता है, मैं उससे दूर रहता हूँ
मगर यादों के बाग़ीचे मे हम हर शाम मिलते हैं
तेरी सूरत, तेरी आँखें, तेरी चुप्पी, तेरी बातें
किताबें तो बहुत है फिर भी हम तुझको ही पढ़ते हैं
भरेंगे ही नही दिल को तो छलकेंगे भला कैसे
ग़ज़ल आपे छलक जाती जो दिल को तुझसे भरते हैं
तेरी बातों की खुशबू से महक उठते फ़ज़ा सारे
जो तेरे फूल से लब हैं, लबों से फूल जलते हैं
कहें कैसे कि कितना इश्क़ तुझसे है मेरी जाना
कि इक तेरे लिए हम अपने घर वालों से लड़ते हैं
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