औरते हमेशा कमजोर ही रहती है..कोई न कोई वजह से दबकर,बेपनाह वफा,और तफसील से किया गया इश्क..उसको खुद में ही जरा सा कर देता है...फिर किसी की भी उँची आवाज उसकी आँखों में आँसु लाने के लिये काफी होते है...कमजोर हो जाती है वो अपना सब कुछ उस अपने को समर्पित करके...फिर जब वो ही उसे समझने में गलती करदे तो वो बेआसरा सी...कोने में आँसुओ के घुंट पीकर मुंह धोकर अपने भीतर को शांत कर देती है,यही एकमात्र रास्ता होता है उसके पास...किसी के गले लगकर रवैये की शिकायत करने की बजाय वो कुछ नही कहकर सब टाल देती है..उसको जवाबदेह नही बनाया जाता..तभी तो वो कभी गिला नही करती ,चाहे चोट जिस्मानी हो या आत्मिक..उसके पास खुद का मरहम होता है..हरेक जख्म के लिये..क्योंकि उसको बहुत से रिश्तों को सींचना होता है..यदि वो भी अकडकर शहतीर की तरह खडी होजाये..तो उसके अपने रिश्ते कभी जडें नही पकड पायेगे
-