Tulika Shrivastva   (© तुलिश्री)
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Joined 25 July 2021


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Joined 25 July 2021
18 SEP 2023 AT 9:05

इक पहचान ढूँढ़ते-ढूँढ़ते
कई रातें निकल गई।
हर रोज़ की उजाले
कई दिन निगल गई।
हाथों में मिला ना कुछ
बस सपनों के कई टुकड़े चुभें।
टिक-टिक करती घड़ी की
सुईयाँ मानों धीरे-धीरे
कई वक़्त बहा गई।
बंद मुट्ठी में जो थीं ख़्वाहिशें
वो भी कहीं फिसल गई।
ख़ैर महफ़िल तो हो गई
पूरी की पूरी खाली पर
ये ज़िंदगी है ज़नाब एक
हाथ से लेती तो दूजे से
देती भी है। ज़रूरत होती
है बस थोड़ी धैर्य के आग़ोश
में ठहरने की और ज़ज़्बातों
के हाथ छोड़ उन्हें आज़ाद
करने की ताकि वे भी समझ
सकें कल्ब से बड़ी क़िस्मत
और क़िस्मत से बड़ी मेहनत
होती है जो मुक़म्मल तभी
होगी जब कोशीशें होंगी पूरी।

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25 FEB 2023 AT 9:31

छोड़कर कुछ यादें
लौट जाती हूँ,
कि साँसें बहोत
कीमती हैं,
ज़िंदगी के हर पल
का वसूल
करती हूँ।

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21 FEB 2023 AT 16:32




जब तुम एक बड़े
ख़्वाब में होते हो ना,
तो तुम एक आईना
होते हो और हक़ीक़त
तुम्हारी वो सही दिशा।

- तुलिश्री






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15 FEB 2023 AT 17:24

कुछ कविताएँ
प्रेम के लिए बनी
होती हैं।
और कुछ प्रेम
कविताओं
के लिए।
फ़र्क बस इतना है
कविताएँ समंदर
हैं और प्रेम नदी।

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11 FEB 2023 AT 22:31

अंधेरा का कहर चाहे कितना भी हो,
वक़्त का कहर है सहर तो होना ही है।

- तुलिश्री

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13 DEC 2022 AT 20:17


ज़िंदगी की किवाड़ में क़ैद कुछ एहसास हैं।
बहती हवाओं में सुलगते कुछ ख़्वाब हैं।

ता उम्र भर का निशाँ दे चुके कुछ जल्लाद हैं।
मौन जुबाँ की तरह ना कुछ कहते वो घाव हैं।

रक्त बहते हैं रगो में सागर के लहरों सा,
याद आता जब अपनों के दिए दर्द पास हैं।

हर पल पहर हर पनपते कुछ सवाल हैं।
सितम किए चेहरों से ढूँढ़ते वो ज़वाब हैं।

आँखें भी पहचानने लगी मुल्क में फिरंगियों को।
बचकर ये ज़िंदगी अब लगी बढ़ने अपने ही राहों में।


- तुलिश्री


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29 NOV 2022 AT 21:14

कुछ कहानियाँ जब मौन होती हैं
तब वो शब्दों का पनाह ले न जाने
कितनों के ज़िंदगी का हिस्सा
कहलाती हैं।

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22 NOV 2022 AT 19:44

कुछ यादें समेटकर शब्दों की दुनिया में
जाना चाहती हूँ, जहाँ ना मिलेंगे हाकिम
ना होंगी हिदायतें।
जो होंगी हसरतें उन्हें खुला आसमाँ मिलेगा,
ज़मीं से परे होकर ख़्वाबों के आलम में एक
नया जहाँ मिलेगा।
ना टूटने का डर होगा ना बिखरने का भय,
आँसूओं से ना कोई रिश्ता होगा, लबों का
हँसी से बस नाता होगा।
हर पल हर क़दम हाथों में एक हाथ होगा,
कभी ना छूटने वाला ख़ुद का साथ होगा।
ना कड़कती धूप ना होगी नरम छाँव ,
शब्दों के आँचल में होगा बस प्यार भरा पनाह।

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18 NOV 2022 AT 13:14

क्या
फ़र्क
है
इनायत
में,
क्या
फ़र्क
है
इबादत
में,
महफ़ूज़
तो
दोनो
ही हैं
दिल
के
मेरे
आलम
में।

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11 NOV 2022 AT 19:47

बरकरार रखने के लिए
प्रयासों के बाती को
निरंतर धैर्य के घी से
भिंगोना पड़ता है ताकि
जगमगाते रहे कुछ
ख़्वाहिशों के लौ जो
बुझ जाते हैं कभी-कभार
ज़िंदगी में आते-जाते
तूफ़ानों के बयार से।

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