रहिमन निज मन की व्यथा, मन हीं राखो गोय
सुनी अठीलैहै लोग सब, बांटी न लैहै कोय
व्याख्या :_ इस दोहे के ब्याज से कवि रहीम ये व्याख्यायित करना चाहते हैं कि अपने मन की व्यथा अगर किसी से सांझा किया जाये तो वो उसे सुनकर कोई समाधान नहीं निकालते, वरन् व्यर्थ में हंसी उड़ाते हैं. इसलिए अपने मन की व्यथा मन में हीं रखना उचित है.- Tulika Prasad
9 JAN 2019 AT 18:41