ठाकुर उत्कर्ष सिंह दुर्गवन्शी   (©UTKARSH SINGH)
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Joined 29 November 2018


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Joined 29 November 2018

मोहब्बत हम करें !
हमारी मजाल कहां,,
मुक्कमल वो करें !
उनकी इतनी मजाल कहां,,

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बड़े खुबसूरत थे चेहरे,
मन में उदासियाँ कम ना थी,,
'मैं-मैं' कह कर लड़ते थे आपस में,
मगर किसी की बातें 'हम' की ना थी,,

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बड़ा द्वंद है,
दिल और दिमाग में,,

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सुन्दर तन और प्यारे प्यारे नैन थे,,
मगर पता नही वो कितने बेचैन थे,,

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ना पाने का गम,
और खोने का डर साथ रहता है,,
पर खुशी इस बात की है,
वो अनजाने में ही सही,हमारे साथ रहता है,,

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नियती समझ के स्वीकार कर लिजिए होनी को,,
शायद इश्वर टालना चाहता हो किसी बड़ी अनहोनी को,,

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वक़्त बुरे भी जरूरी है
अपनो की पहचान के लिये,,
कम से कम पता तो चलता है,
कितने अपने प्यासे हैं हमारी जान के लिये,,

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यूँ सामने आना तो जरा चेहरे पे कुछ लगा लेना,
मिलने वाली हो जब नजरें,
झुका के नजरें जरा अपनी जुल्फों को हटा लेना,,

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जब चाहत हो एक तरफा तो क्या कीजियेगा,,
जब ना मिले बदले में मोहब्बत,
तो बंद आखों से रो लिजिएगा,,

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अपनी हरकतों से ही परेसान हूँ मैं,,
कैसे कहूँ की अंजान हूँ मैं,,

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