ठाकुर साहब   (Dr.Surya Thakur)
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Doctor by proffession writer by nature.
आवारा हूं।
Instagram; suryacp0808
Joined 25 November 2017


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12 DEC 2024 AT 20:01

मैं ठहर गया किसी चौराहे पर ,
तो तमाशे तमाम हो गए ,
तुमने भी देखा मुझे ।
फिर मंजर सरेआम हो गए ।।

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4 DEC 2024 AT 22:52

कुछ तो रजा तेरी भी होगी

वर्ना यूं बेहतरीन मेरी तबियत ना होती!

मैं कागज सा था तेरे ख्यालों में,

तू तिल्ली माचिस की यूं पुरानी ना होती.

रगड़ कर सोख तूने जलाया मुझे

कर खाक मुझे मिटाई ना होती.

फिर भी ना जाने क्यों मगर

बटोर कर राख मेरे अरमानों को

बाना कर सूरमा यूं सजाई ना होति!

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2 DEC 2024 AT 17:23

बेवजह की बातों में
तुम सर खपाये बैठे हो
उठो मानस ,तुम शस्त्र उठाओ
देखो तुम क्या गँवाये बैठे हो ।

रणभूमि में युद्ध की हाहाकार मची है ,
तुम संस्कार छुपाये बैठे हो ।

लड़ो शेर तुम खूब लड़ो ,
वीर महाराणा के तुम वंसज हो
मात ना खाना माथे पे ,
तुम जो किरदार छुपाये बैठे हो ।

लहू व्यर्थ ना हो एक बूंद भी ,
हर कतरे का कर्ज़ चुकाना है
झोक दो ख़ुद को अग्नि में ,
सर पर आसमान उठाये बैठे हो
मैदान -ए-जंग में खड़े हो कर ,
अपनी पहचान छुपाये बैठे हो ।

वार करो तुम हिम्मत से ,
आँखो से तीर भेदो तुम
चीख सुनो तुम शत्रु के
रण समशान बनाये बैठे हो ।

ललकार लहू की कहती है ,
तुम जिगर में भला करते हो
दुश्मनों की आँखो में ,
मृत्यु का ख़ौफ़ रखते हो

सिर्फ़ दण्ड देना उचित नहीं ,
पुकार के ये तुम कहते हो
विजयध्वज का परचम लहराओ
उधार कमाए बैठे हो ,
मातृभूमि का ,एहसान चुकाए बैठे हो ।

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9 OCT 2024 AT 10:54

मेरी परिभाषा ।

आसान है क्या हर बार ख़ुद को यूँ अकेले रखना ,
जब पता है तुम्हें डर लगता है तन्हाई से ।
पर तुम मर्द हो शायद इसी वजह से ,
अकेले रहना तुम्हारी मजबूरी हो
छिपाते हो ये दर्द भी तुम की लोग हसेंगे तुम पे ,
ये जान कर की डरपोक हो तुम ,
और ख़ुद को मर्द भी कहते हो ।

दर्द बयान भी नहीं कर सकते ,
या शायद तुमसे बया ये हाल ए दिल होता नहीं
की अजीब हो जाएगा अगर अनजाने में भी ,
जो एक बूँद भी आँशु की आँखो से निकले तुम्हारे
क्यूंकि ये एक ऐसा जमाना है
जिस जमाने में मर्द रोते नहीं ।

सिसक जो लो तुम चुपके से कहीं ,
और आँखे जो सूज जायें ,
आफ़त है फिर तो ,
अगर कोई ये बात बूझ जाए ।
फिर बनाते हो बहाने की नींद नहीं आई रात भर ,
हँसकर ये बात तुम सबको यूँ बतलाते हो ,
शायद इस वजह से भी तुम मर्द कहलाते हो ।

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21 JUN 2024 AT 21:20

मेरी हाल पर ख़ुद का हाल भी थोपते हो ,
मेरी नक़ल करते हो या यूँ ही सोचते हो ,
माना कि तू भी मजबूर है हालात को लेकर ,
और , मैं ज़्यादा लाचार हूँ तुम्हें देख कर ।

बनावटी किससे सुना कर ,
जो जज्बात नापते हो ,
किससे हमारे भी कम नहीं ,
जो इश्तेहार देखते हो ,
खबर लेनी हो हमारी तो मुझसे पूछो ,
मुझे देख कर क्यों अख़बार फेकते हो ।

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17 APR 2024 AT 22:07

हमने हालातों से लड़कर ही जीना सीखा है,
यूं ही नहीं टूट कर खुद से महफिलों में पीना सीखा है ।

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19 FEB 2024 AT 12:32

हुनर को हैसियत की ज़रूरत नहीं ।
नियत को नसीहत की ज़रूरत नहीं ।।

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15 JAN 2024 AT 19:47

जो वक्त पे बीते जख्म बाद मरहम का क्या कुसूर।

जो दर्द पे आई बात तो फिर हमदम का क्या कुसूर।।

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9 JAN 2024 AT 9:45

जो सब हार के बैठा हो ,
उससे जीत भी गए तो जीते क्या ,
और हार गये तो हारे क्या ,
मर गया है वो भीतर से ,
जान से उसे कोई मारे क्या ,
जिसे सब छोड़ के भागे हो ,
वो किसी और के सहारे क्या ।

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4 JAN 2024 AT 11:41

जिन्हें फिकर नही ,
अब उनका जीकर नही ।

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