Mujhe koi matlab nahi tumhare maidaan se
Dekhta hoon mai tumko aasman se
Tumhara maksad hoga dikhawa karna
Mai to jeet rha hoon itmenaan se-
पंक्षी पिंजरा तोड़ कर
दाना -पानी छोड़ कर
उड़ गया है आसमां में !!
चारो ओर सन्नाटे हैं
कैद में ना जाने कितने प्रहर काटे हैं
घाव है हर एक निशां में
उड़ गया वह आसमां में !!
बीती जिंदगी काली रात है
उसने की शून्य से शुरुआत है
गूँज रही ध्वनि हर दिशा में
उड़ गया वह आसमां में !!-
Labon par khamoshi man mein tufaan liye phirta hoon
Mai tumhare diye zakhmon ke nishaan liye phirta hoon
Meri khamoshi ko meri kamjori mat samjhna
Mai akela pura jahaan liye phirta hoon-
ना जाने कितनी रातें गुज़ारी है, मैंने सितारों को देखकर
सोचा था मोहब्बत नहीं करेंगे अपने यारों को देखकर
कह दिया होता तो हम तुमसे दूर चले जाते
दुःख होता है तुम्हारी इन बेरुखी इशारों को देखकर-
कुछ दूर अकेले रहता हूँ
कुछ खुद से बातें करता हूँ
कभी मिलना कभी दूरियाँ
आँसू नहीं दिखाती ये मजबूरियाँ
सबको साथ लिए फिरता हूँ
कुछ दूर अकेला रहता हूँ
कुछ छिपाता हूँ कुछ दिखाता हूँ
कुछ को बहुत मन से समझाता हूँ
थोड़ी थोड़ी बातें करता हूँ
कुछ दूर अकेला रहता हूँ-
अखंड हैं, जो अनंत हैं
सृष्टि का जो अंत हैं
वही हैं शिव
वही हैं शिव !!
जो रूप हैं, कुरूप हैं
जो सत्य का स्वरुप हैं
जो ब्रह्म हैं, जो राम हैं
जो बलशाली हनुमान हैं
वही हैं शिव
वही हैं शिव
जो काल के भी काल हैं
ख़ुशी हैं जो आकाल हैं
जो भूत हैं, भभूत हैं
जिनकी संरचना ही अद्भुत है
वही हैं शिव
वही हैं शिव
जो धर्म हैं, अधर्म हैं
मनुष्य का जो कर्म हैं
आकार हैं, जो निराकार हैं
जिनमें समाहित सम्पूर्ण संसार है
वही हैं शिव
वही हैं शिव-
चला हूँ नाव लेकर समंदर पार करने
जो दिल में है, मैं उसका इज़हार करने
ख़बर फ़ैल गयी आग की तरह शहर में
कोई सिरफिरा आ रहा है मोहब्बत का दीदार करने-
अपने जज़्बातों को शायरी में लिख रहा हूँ
अपने हालातों को डायरी में लिख रहा हूँ
मुझे बनना है पहले जैसा
मुझे कहना है पहले जैसा
मुझे खुद का दोस्त खुद बनना है
मुझे किसी और के लिए नहीं बदलना है
माना की अजीब हूँ थोड़ा, अलग तो नहीं
समझाऊं क्यूँ लोगों को, गलत तो नहीं
माना जिंदगी यही है लोग आतें हैं जातें हैं
फर्क इतना है की लोग झूठ बोलना जानते हैं
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रात जैसे ग़म, जुगनू जैसी यहाँ खुशियाँ
ना जाने क्यूँ ढूंढ़ते हम, खुद में हीं कमियाँ
कोसते हैं खुद को हम, टोकते हैं खुद को हम
हार के डर से, रोकते हैं खुद को हम
खामोश है तू क्यूँ यहाँ, चुप है तू किससे
जिंदगानी है महज़, कुछ लम्हों के गुच्छे
बात कर शुरुआत कर आसान है
खुद के भीतर क्यूँ तू इतना परेशान है
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