ठाकुर अनुज सिंह  
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Joined 30 June 2020


Joined 30 June 2020

छाँव भी वो कब तक दे पाता,
इतना फ़ल ना तोड़ा गया,
जितनी शाखाएँ उखाड़ लीं गई उसकी।

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वो थे तो ज़िन्दगी और थी
वो गए तो ज़िन्दगी और थी

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वो करीबियाँ ही क्या, जो साथ तो हैं, पर इतने पास नहीं,
वो करीबियाँ ही क्या, जो मेरी धड़कनें तुमने सुनी ही नहीं,

वो करीबियाँ ही क्या, जो मेरी सांसें तुम, महसूस ना कर पाओ,
वो करीबियाँ ही क्या, जो आँखों में तुम मेरी, खुदको देख ना पाओ।

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लिखाया था नाम जिसका हाथ पर,
मिटा गया वो खुद ही,
जब बात आयी जात पर।

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तराज़ू में तोला तो सब जा सकता है
पर एक भाव में नहीं
सबके अपने गुण अपनी विशेषताएं होती हैं

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तलब नहीं किसी जाम की
तलाश है बस उस शाम की
जहाँ बस तुम मैं और चाय

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Kuch_baatein_kalam_se

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Kuch_baatein_kalam_se

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हैं आते बरस ये जाने को,
हैं जाते बरस ये आने को,

फ़िर कुछ और किस्से जुड़ चले यादों में बसाने को,
फ़िर कुछ और कहानियाँ मिलेंगी यादों का हिस्सा बनाने को।

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है कील वही, तारीखें वही, हैं दिन वही
आया है वक्त बस नया पंचांग लगाने को।

और आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देने को
खाते रहिए पीते रहिए खुश रहिए स्वस्थ रहिए।

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