पुर्णिया की बात पुरानी नहीं जानी पहचानी हो गई
अब अपनी शुरु एक नयी कहानी हो गई।।
पुरानी बात को भूलकर नई जिंदगानी हो गई।
मैं अब स्वीकार करता हूं तू मेरी दीवानी हो गई।।
वादा करता हूं तुझे नहीं छोड़ेंगे
तुझसे मुंह न कभी मुंह मोड़ेंगे
सचमुच में तू मेरी दिलजानी हो गई।
तेरी मेरी शुरू एक नयी जिंदगानी हो गई।।
तुमसा कोई मिली नहीं, बेकार की परेशानी हो गई।
पुरानी बात को छोड़ो, किस्सा पुरानी हो गई।।
ना किसी का हुआ,ना किसी की है अब तुम भी मान गई।
बस कुछ दिन इंतजार कर
रिश्ता खानदानी हो जायेगी।।
~tarun yadav raghuniya-
आज का प्यार
मोलभाव भाव से बिकता यारhttps://kumartarunyadav.blogspot.com/20 read more
रे पगली! सुन
तुम मुझे चाहो या ना चाहो
फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन तेरी उदासी से फर्क पड़ता है।।1।।
तू मेरी जिंदगी में आओ या ना आओ
फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन तेरी उदासी को देखकर फर्क पड़ता है।।2।।
तुम खुश रहो हंसती रहो अच्छा लगता है
लेकिन तेरी उदासी को देखकर फर्क पड़ता है।।3।।
दुनिया वाले का काम है ताना मारना
कोई ताना से फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन तेरी उदासी से फर्क पड़ता है।।4।।
भगवान ने कितना खूबसूरत रुप दिया।
इसपर तुम घमंड करो फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन तेरी उदासी से फर्क पड़ता है।।5।।
हंसती-खेलती गुनगनाती रहो
चाहे तूं मुझे मुझे इग्नोर करो
फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन तेरी उदासी से फर्क पड़ता है।।6।।
~तरुण यादव रघुनियां-
मेरी बीरान आंखें कह रही हैं
हर दर्द आंसू में बह रही हैं।।
मुझे देख कर सब जल रहें हैं
मेरे भावनाओं से खेल रहे हैं।।
मेरे दर्द का किसी को परवाह नहीं
तन्हाई में जी रहा हूं इनकार नहीं।।
सच कहूं या झूठ कोई मानते नहीं
सब कहता तेरा बात कौन जानते नहीं।।
मुंह बंद हैं लेकिन दिल हैरान हैं
चलो कोई बात नहीं कुछ दिन का मेहमान हैं।।
~तरूण यादव रघुनियां
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सोच सोच कर दिमाग खराब है
लगता भगवान को यही स्वीकार हैं।।
सोच सोच कर बहुत रास्ता को छोड़ा
बच बच कर कितनों से मुंह को मोरा
अब तो चारों ओर से गिरफ्तार हैं
लगता मेरा सारा बुद्धि बेकार है।।
हंस हंस कर कितनों को टाला
सोचता था अपने को हिम्मतवाला
अब बात दिल और दिमाग से बहार है
क्या कहूं खुद कुछ कहने से लाचार हैं।।
~तरूण यादव रघुनियां-
दुनिया का ये क्या दौर हैं
समझ लेता कुछ ही और हैं।।
कुछ देर के हंसी मजाक को समझ लेता प्यार है
जबकि खुद दोनों को ये बात नहीं स्वीकार हैं।।
दोनों के बिना रजामंदी से बंधन जोड़ते हैं
पता नहीं बीच में कितनो का दिल तोड़ते हैं।।
सोच सोच कर यार बहुत ही परेशान हैं
अब तो खाना पीना भी लगता हराम है।।
~तरूण यादव रघुनियां
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बात से अनजान था नहीं परेशान था
मेरा जिंदगी तो शानदार आसान था।।
जबसे बात को जाना हूं उसको माना हूं
अब दिन और रात का चैन खो गया
पता नहीं यह मुझे क्या हो गया।।
चारों ओर झूठी बात का शोर है
उसी पर जोड़ है
पता नहीं अब इसका क्या निचोड़ है।।
सोच सोच कर घबरा रहा हूं
क्या कहूं दर्द बता रहा हूं
सच तो छुप गया झूठ की परछाई में
हम तो घुंट घुंट मर रहा हूं रजाई में।।
~तरूण यादव रघुनियां-
क्या दुनिया क्या पुर्णिया सब व्यर्थ है।
तू नहीं तो जिंदगी का क्या ही अर्थ है।।
भूल जाओ जो था सब सपना था।
गुजरा वक्त सच में नहीं अपना था।।
वादे,इरादे, हंसने वाली बातें सब टूट गया।
जब मेरा मुकद्दर ही मुझसे रूठ गया।।
नसीब के आगे किसका चलता है।
यहां सब उनका जिंदा कठपुतला है।।
जो पहले का दौर था वैसे नहीं चलना।
खुश रहो, आबाद रहो, हंसते ही रहना।।
~तरूण यादव रघुनियां
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कितना फूल मुरझा गए मुझे मनाने में
क्यों समय बर्बाद कर रही है पछताने में।।
ना किसी का इंतजार है ना किसी से प्यार है
अपना तो जिंदगी सदाबहार है सदाबहार हैं।।
झूठ फरेब दिखावा से प्यार का जाल बुनते हैं
नया-नया कपड़े बदलना यूं मुस्कुराना को संस्कार कहते हैं।।
यहां कौन किसी से प्यार करते हैं।
सब तो हवस के शिकारी है
शिकार करते हैं ।।
चाहत ,इच्छा, मनोकामना सब व्यर्थ है
सांसारिक मोह माया के कारण कोई नहीं अर्थ है।।
अपना तो इतना सोच है व्यर्थ है यहां दिल लगाने में
सब कुछ ठीक हो जाएगा प्रभु को दिल में बसाने में।।
~तरूण यादव रघुनियां, मधेपुरा बिहार
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बेबजह बात पर यूं ,तूल न दिया करो
कभी हकीकत से भी सामना किया करो।।
हकीकत पता चलने पर आसमां फट जाते हैं
कभी कभी रिस्तों में दीवार पड़ जाते हैं।।
नेम फेम के चक्कर में जलील हरकत करते हैं
अपना और अपनों को मुफ्त में खो बैठते हैं।।
ये दुनिया किसका है किसका होगा
क्या गुमान करते हो तुम भी दफा होगा।।
आंख पर पट्टी बांध कर दुनिया का सैर करते हो
अपने अस्तित्व को झुठला कर किसपर हंसते हो।।
तरूण तुम भी एक दिन तरूण नहीं रहेगा
अच्छा कर्म,घर्म कर यही तो साथ देगा।।
~तरूण यादव रघुनियां
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सुंदर रूप में सुराख होता है
मान मर्यादा सब ख़ाक होता है।
गर विश्वास करो तो पश्चाताप होता है
और पूछता है क्या यही पाप होता है।।
रूप दिखाकर क्या इंसाफ होता है
बदन दिखाना ही क्या नाप होता है
यही रंग समाज का अभिशाप होता है
पूछते हो दिखाने में भी पाप होता है।।
आंख का का कुसूर क्या अपने आप होता है
जब मन नहीं अपने पास होता है
झूठ ही कहते हैं कुछ और बात है
उसका जिम्मेदार तो खुद अपने आप होता है।।
~तरूण यादव रघुनियां
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