कभी जो चले मेरा जिक्र तो
एक धुधंली सी शाम सजा देना
चाँद को होने देना धुँआ धुँआ
सुनहरी धूप से सलाम भिजवा देना-
मेरी कहानी का वो किरदार है तू
किसी ने पढ़ा नहीं जिसे बस बहुत खास है तू
मेरे शोर की एक खामोश आवाज़ है तू
सब बेखबर हैं जिसकी खनखनाहट से,
मेरी धड़कन का तो साज़ है तू
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ये आँखें रूबरू हुई हैं एक ऐसे मंज़र से
कल तलक हमसाया बन कर
जो रिश्ते चलते थे साथ में
कुरेदते हैं पैरों तले की ज़मीन
झूठी मुस्कान के खंजर से
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वो मेरे लफ़्ज़ों से एक कहानी बुन लेते हैं
खामोशी से सुनते हैं, तारीफ भी करते हैं
इस गुफ्तगु को मिलती तब असली दाद है
वो बस सुनते नहीं इस कहानी को जीते मेरे साथ हैं
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वो थाम रहे हैं ख्वाबों में मेरा दामन
कि हकीकत में अब ये मयस्सर कहाँ हैं
वो गुनगुनाते हैं अब अक्सर नाम मेरा खामखां
कि गुफ्तगू करने को अब हम रूबरू कहाँ हैं
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उसकी आँखों में एक खामोश कहानी है
लबों पर मुस्कान है पर दिल खाली है-
तेरी साँसों में मेरी महक के भीने एहसास रह जाएंगे
ये फिज़ा और बहार फिर होगी मेरी खुशबू के मौसम ना आएगें-
दूर चले गए तुमसे तो हम बहुत याद आएगें
तुम बस तकते रहोगे राहें हम नज़र ना आएगें
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दिल उसी का डूबता है
जिसे कुछ खोने का खौफ होता है
चुभते हैं शीशे सपनों के अक्सर उन आँखों मे
जो रोज़ उनके टूटने के डर से रात भर ना सोता है-
तू एक रूठे ख्वाब सा तोड़ कर हर नाता चला जा
बन कर अश्क बह जा ये सपनो का नगर खाली कर जा
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