मेरी कहानी का वो किरदार है तू किसी ने पढ़ा नहीं जिसे बस बहुत खास है तू मेरे शोर की एक खामोश आवाज़ है तू सब बेखबर हैं जिसकी खनखनाहट से, मेरी धड़कन का तो साज़ है तू
वो मेरे लफ़्ज़ों से एक कहानी बुन लेते हैं खामोशी से सुनते हैं, तारीफ भी करते हैं इस गुफ्तगु को मिलती तब असली दाद है वो बस सुनते नहीं इस कहानी को जीते मेरे साथ हैं
वो थाम रहे हैं ख्वाबों में मेरा दामन कि हकीकत में अब ये मयस्सर कहाँ हैं वो गुनगुनाते हैं अब अक्सर नाम मेरा खामखां कि गुफ्तगू करने को अब हम रूबरू कहाँ हैं