उन खामोशियों से भला सवाल क्या करते
शमां के बुझने पर हम बवाल क्या करते
ये दर्द ,आंसु, अंधेरा सब हिस्से हैं जिंदगी के
किसी के आने या जाने पर मलाल क्या करते...
पत्थर नही अगर तो नाजुक भी नही इतना
अपना ही दिल तोड़ने की मजाल क्या करते
दो पल की ही ज़िंदगी है हंस कर जी ले
पीछे मुड़ जाते अगर तो कमाल क्या करते...-
चले थे वो मेरे दामन को दागदार करने
जिनके खुद के किरदार मरम्मत मांग रहे
खामोशी से देखा है इस खुदगर्ज दुनिया को
कैसे यहां हर कोई अपने मतलब गांठ रहे
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दुनिया के सामने बस नफ़रत दिखाया
पर दिल में तेरे लिए थोड़ा प्यार भी छिपाया
इश्क किया जिसने भी बस आंसू ही बहाया
ना सुकून तेरे हिस्से आया ना मेरे हिस्से आया-
आशिक़ नहीं है ये कलम मेरी पर
यहां इश्क,आंसू ,दुनियादारी सब लिखे जाते हैं
आप आए हैं उन शायरों के बाजार में जनाब
जहां जज़्बात कौड़ी के भाव बेचे जाते हैं-
किसी के प्यार में इस कदर अंधा क्या होना
ज़मीर ही मर जाए फिर ऐसे जिंदा क्या होना-
ना शाम , ना सुकून, ना इश्क की दरकार है
ना गम, ना खुशी, ना ही ये दिल बेज़ार है...-
मुट्ठी में रंग और उन गालों पर गुलाल
वो मुस्कुराता सा चेहरा और दिल में बवाल
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वो बिछड़े भी ऐसे की कभी घर ना आए...
बसंत के इंतज़ार में बस पतझड़ ही आए....-
तुम बिन ये जिंदगी वीरान तो नहीं
गमों की ये कतारें भी आम तो नहीं
धूप ढलने को है ये माना मगर
हरदम के लिए ये शाम तो नहीं
तसल्ली में जीने की ख्वाहिश तो है
पर तसल्ली में जीना हराम तो नहीं
झूठ के खड़े थे जो मोहब्बत के किले
वो इश्क का कहीं कत्ल ए आम तो नहीं
तन्हाई में बैठ के आंसु बहाऊ
आंसु गिराना मेरा काम तो नहीं
सच में तुम बिन ये जहां सुनसान तो नही
और इस बात से धड़कने भी हैरान तो नही-
स्त्री भूल सकती है सारे द्वेष और दर्द को अपने सुध में भी...
पर अपमान स्वयं का ना सीख पाई भूलना इस युग में भी....-