देव घनाछरी।
8,8,8,9
पायल की छन छन,
कंगन की खनखन ,
गौरी ठुमकत आये,
झूम झूम करे मिलन।
ठंडी ठंडी पुरवाई ,
बसंत बहार आई,
पात पात मुक्ता छाए,
चूनर उड़ाये पवन।
तन मन डोल गया,
केसरिया रंग गया,
टेसू फूल खिल गया,
बागों में खिलते चमन।
नयी नवेली नारी है,
पहने पीली सारी है,
नैन बनें रतनारे,
सब अधूरा है अमन।
तृप्ता श्रीवास्तव-
आभार सवैया
सृजन शब्द-संतान
221-221-221-221
221-221-221-221
संतान विश्वास के योग्य होता कहाँ
सोचना देखते रोज संस्कार ।
हीरा लगे लाल संसार आधार
माता पिता देख बेटी बनी सार।
संतान सौभाग्य होती जहाँ रोज माँबाप तैयार आगाज आधार।
दें रोप पौधा नया ऊगता सूर्य की रोशनी में ठीक बेटा करे पार।
विश्वास हो प्रेम का प्रेरणा स्त्रोत दातार आभार साभार को मान।
विश्वास वेदाग बेवाक साकार
साक्षी बताना सभी मान नादान।
आदर्श आनंद वाचाल लाचार
चालाक विश्वास शृंगार सम्मान।
ऊँचा उठाया आभार माना जहाँप्रेम धारा पिपासा मिले ज्ञान।।
तृप्ता श्रीवास्तव-
सुंदरी सवैया
सृजन शब्द-कलियाँ
112-112-112-112
112-112-112-112+2
कलियाँ अलियाँ जब फूल खिले उड़ते भँवरे खिलती फुलवारी।
कलियाँ बन नाजुक फूल खिले बगिया मत तोड़ कली कचनारी।
कलियाँ बिटिया सब एक समान हुई इनको बनना सुकुमारी।
कह चंद्र चकोर सुनो सखियों
यह जीवन है सबका सुखकारी।
चल रे मन गोकुल धाम जहाँपर पावन मोहन कृष्ण मुरारी।
विनती करते कब से दुखिया अब लाज बचा घनश्याम हमारी।
प्रभु दर्शन की दरकार अभी
अब द्वार खड़ी जब संकट भारी।
अब जीवन सौंप दिया सरकार तुम्हें शरणागत हूँ बलिहारी।।
तृप्ता श्रीवास्तव।-
मरहठा छंद।
सृजन शब्द-कृष्ण जन्म।
10+8+11
पदांत-21
अब तो आजा रे,मोहन प्यारे, जन्म लिया संसार।
चहुँ ओर धूम है, कृष्ण जन्म है, करें जगत संहार।।
ले बाबाछितरी ,खुलती डगरी,
सोये पहरे दार।
तम अँधियारी, यमुना भारी, वसु चले हैं धार।।
जग में जन्मा है,कष्ट हरण है,
मथुरा में अवतार।
लट घुँघराली,छविअति प्यारी,
मोहित है संसार।।
बज रही बधाई, खुश हैं माई,
घर-घर मचती धूम।
कुम -कुम चंदन की, होली होती,बार बार चरण चूम।।
तृप्ता श्रीवास्तव-
लावणी छंद गीत।
ध्रुव पंक्ति-तुहिन कणों से आच्छादित अब,तृणदल कुसुमित उपवन हैं।
यति-16/14
बरसा विगत ऋतु शरद आई,
ठंडक से सिहरा मन है।
तुहिन कणों से आच्छादित अब, तृणदल कुसुमित उपवन हैं।
कली -कली खिलती प्यारी ,भँवरा डोले मधुवन है।
आज चंद्र की खिली यामिनी,
पल पल खिलता यौवन है।
मृगतृष्णा जब बने पिपासा,
होता अंतस अर्पण है।।
तुहिन कणों से आच्छादित अब, तृणदल कुसुमित उपवन है।
बीजों का संचित करने को,
कृषक बंधु उल्लासित है।
धरणी अंकुर फूट रहे हैं,
सूर्य रश्मि आह्लादित हैं।
अवनी अंबर मिलें क्षितिज में,
स्वर्णिम सारे स्वप्न है।
तुहिन कणों से आच्छादित अब, तृणदल कुसुमित उपवन हैं।
रजनीगंधा महके निशिदिन,
धवल चाँदनी बिखराये।
भीनी-भीनी खुशबू झरती,
बृह्म कमलिनी खिल जाए।
अरुणिम आभा की किरणें भी, आज क्यों मिलती स्वजन है।
तुहिन कणों से आच्छादित अब,तृणदल कुसुमित उपवन हैं।
बरसा गई ऋतु शरद आई,
ठंडक से सिहरा मन है।
तृप्ता श्रीवास्तव।-
कुंडलियाँ
सृजन शब्द-जागो
जागो जागो राधिका,मोहन आये द्वार।
बाँधे प्रेमिल डोरियाँ,
नयन चुराते सार।।
नयन चुराते सार,
बजाते मुरली प्यारी।
रास रचाते श्याम, मोहिनी सूरत न्यारी।।
सखियाँ कहती आज,आ रहा कान्हा भागो।
अद्भुत लीला रोज, किशोरी अब तो जागो।।
जागो भारत वासियों,आया संकट घोर।
अन देखा मत कीजिए,सजग रहो हर ओर।।
सजग रहो हर ओर,
आंतकी सर पर आया।
वध होता निर्दोष,कहाँ तक जान बचाया।।
कहती तृप्ता आज, मुसीबत से मत भागो।
बनिए जिम्मेदार,
कभी तो मानव जागो।।
तृप्ता श्रीवास्तव-
राधेस्वामी छंद।
विधान-16/16
पदांत-22
ध्रुव पंक्ति-कालांतर की बातें छोड़ो, वर्तमान में सीखें जीना।
पुरातनकाल कैसे भूलें,हर पल अंतस देता पीड़ा।
उलझन बढ़ती जाती रामा, जैसे लगता दीमक कीड़ा।
कालांतर की बातें छोड़ो, वर्तमान में सीखें जीना,
चाहत है झंझट से दूरी,
प्रभु राम नाम का रस पीना।
अंतस माँ की मूरत बैठी, बहतरणी पार करायेगी।
जब -जब डगमग डोले नैया,
अगला पिछला याद दिलायेगी।
अंतस धीरज रखना होगा, कैसे समय बितायें नीना।
कालांतर की बातें छोड़ो, वर्तमान में सीखें जीना।।
तृप्ता श्रीवास्तव-
आज का राधेस्वामी छंद।
सृजन शब्द-संबंधों को जीना सीखें।
संबंधों को जीना सीखें,रिस्ते तभी मधुरता लाते।
सत्कर्मो से जीवन चलता, आपस में प्रेमी बन पाते।।
जब जीवन है तब तक साँसे, कैसे कौन कहाँ मिल जाते।
जिस दिन पिंजरा खाली होगा,
कोई उपाय काम न आते।
मन पंक्षी कब उड़ जायेंगे,
नर-तन माटी में मिल जाते।।
संबंधों को जीना सीखें,
रिस्ते तभी मधुरता लाते।
अंतस चक्षु खोलदो सारे,
तुलसी कबीर येही गाते।।
तृप्ता श्रीवास्तव।-
मत्त गयंद सवैया।
सृजन शीर्षक-दीपक
पदांत-22
211-211-211-211
211-211-211-22
दीपक आज उजास करावत,
रोशन दीप हुए घर वाले।
कौन घड़ी भरमाय रहे तुम,
देख जिया सबरे मन काले।।
दीपक ज्योति जहान सुहावन,
संगत तेल दिया हर बाती।
संतन संग रही मिल भावन,
मान समान भये दिन राती।।
दीनदयाल दया करिये अब
आप महान बनो हरि नामा।
मोहन जाप करो सब केशव,
भक्तन शक्ति जगा कर रामा।।
तृप्ता श्रीवास्तव।-
दुर्मिल सवैया
आठ सगण
सृजन शीर्षक-सबको अपना अधिकार मिले।
112-112-112-112
112-112-112-112
समता ममता सब साथ चले
सच का सपना हर बार मिले
घर द्वार मिले हर बाग खिले
सबको अपना अधिकार मिले।
सुख की अनुभूति मिले सबको
निशिता निविधा भरपूर चले
हर कंटक दूर रहे तुमसे
तज झूठ सदा सब लोग मिले।
मत छीन किसी घर की खुशियाँ
जब मातु पिता मिलते रहते।
अब दीन दयाल दया करिये
हर बात तुम्हें समझा कहते।
कर प्रेम सदा सबको दिल से
सुविचार रखो मन में रहते।
जपनाम लिया हमने अपना
तब जाकर राम सिया कहते।
तृप्ता श्रीवास्तव-