खामोशियों की भी एक उम्र होती है,बस कभी-कभी कुछ ज्यादा ही लम्बी होती है.....
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फ़लक पर रिहाईश की ख़्वाहिश नहीं..
पर,पैरों के निशां, ज़मीं से कैसे मिट जाने दूँ।।-
कई दफ़े हम इस मुग़ालते में रहते हैं कि हम आगे बढ़ चुके हैं,
पर मन है कि कहीं अटक सा जाता है.....-
सुनने और कहने के बीच,
जो अनकहा सा रह जाता है
वो जो बस ज़बान पर
आके रूक जाता है..
थोड़ी झिझक,थोड़ी उलझन
लिए सही-गलत के हजारों प्रश्न
मन की देहरी पर शोर मचाते हैं
अक्सर व्याकुल से कुछ दो-चार शब्द....
-Toshi Sharma
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विस्मृतियों के जंगल में,
विगत की स्मृतियाँ धुँधली होकर भी
रोशन-रोशन रहती हैं......-
"कितना सुख है बन्धन में......."
गुनगुनाते हुए मुक्त होना ही सुकून है....-
ईश्वर की सत्ता पर अविश्वास करने के जायज़ कारणों के होते हुए भी
अक्सर हर सुख-दुःख में सबसे पहले वही याद आए...
असल में बात इतनी सी है कि,
ईश्वर का होना या ना होना मायने नहीं रखता
जरूरी है विश्वास का होना...
क्योंकि बिना विश्वास न प्रेम होता है न ही प्रार्थना
यकीनन इसीलिए तमाम वजहों के बावजूद
बात प्रेम की हो या प्रार्थना की,
मन झुक ही जाता है उस अनदेखे ईश्वर की देहरी पर।।
-तोषी शर्मा-
कड़वाहटें घर न बना ले मन और ज़बान में बस इसलिए भी प्रेम कविताएँ लिखी और पढ़ी जानी चाहिए.....
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नए साल में शब्दों में थोड़ी नरमी हो और स्पर्श में थोड़ी मुलायमियत....सबके हिस्से थोड़ा यकीन हो और थोड़ा सुकून भी....थोड़ी उम्मीदें..थोड़े सपने....थोड़ी मुस्कराहट...और ढेर सारा अपनापन....और बस थोड़े से ज्यादा इंसान बने हम...🌹🌹
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जब मौसम का मिज़ाज ठंडा होने लगे , तब रिश्तों में स्नेह की गर्मी बढ़ा लेनी चाहिए... रिश्ता फिर मन का हो या जन्म का... उसे चाहिए ही क्या...
मुट्ठी भर धूप, एक चुटकी हँसी.
कतरा भर नमी, और बस,
एक झोंका ताजी हवा का......
-तोषी शर्मा
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