topillai1   (Meandering Mind)
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Joined 31 December 2017


Joined 31 December 2017
9 MAR AT 21:55

Going against the flow is brave, but all rebels don’t end up changing the world

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17 FEB AT 19:41

माना के कहने को कुछ भी बाक़ी नहीं है, मगर फिर भी मैं अल्फ़ाज़ ढूँढता रहता हूँ

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13 FEB AT 19:21

Every monster has a Parrot that holds his vulnerability. It takes a bit to realise though

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7 FEB AT 23:21

ज़िंदगी इसी ग़लतफ़हमी में गुज़र गयी के वो मुस्कुरा रहा है तो मुझ से खुश ही होगा

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8 OCT 2022 AT 22:04

समझ कर भी कुछ किया नहीं तो उस समझ का क्या करोगे
झूठ से दिल तो बहल जाएगा मगर फिर सच का क्या करोगे


अजय पिल्लई


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2 NOV 2021 AT 23:07

मेरी ख़ता इतनी रही के मैं सब को अपना समझता रहा….सब मुसाफ़िर थे कोई हमराही नहीं

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8 AUG 2021 AT 21:39

हैं तारें किसी के, है चाँद किसी का
हमें जो मिला वो सब हंसी हंसी का
कोई तो वजह होगी इस अकेलापन की,
कुछ तो है जो अब तक हमने ना सीखा


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5 MAY 2021 AT 0:00

एक थे हज़ार थे, शिकायतों के ग़ुबार थे
जो शिकायतों से घिरा रहा, गिले बेशुमार थे

वो मैं और तुम जो कभी हम ना हुआ
एक सफ़र जो कहीं ख़त्म ना हुआ
किनारों से लगे मुझे, जो सच में मझधार थे
.....जो शिकायतों से घिरा रहा, गिले बेशुमार थे

चला बादलों से ऊँचे अरमान लिए
उड़ता रहा आँखों में आसमान लिए
हवा ही थी परों में पर उसके भी तो भार थे
.....जो शिकायतों से घिरा रहा, गिले बेशुमार थे

अंधेरों से उजालों तक की आस में
कई रात बीती नूर की तलाश में
जो दिए जलाए जागकर वो सुबह बेकार थे
.....जो शिकायतों से घिरा रहा, गिले बेशुमार थे

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30 APR 2021 AT 23:13

फेंक कर ज़मीन पर पल भर में आईना तोड़ दिया
और अब हमसे पूछते हैं सच बोलना क्यों छोड़ दिया

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25 DEC 2020 AT 16:23

आइना देख कर सोचता क्या है
यही हक़ीक़त है पूछता क्या है

तूने भी लगाई है कुछ चिंगारियाँ
आग लगी है तो देखता क्या है

यू ना मिटेगा ये निशान चाहने से
ज़ेहन का दाग है पोंछता क्या है

फाड़ के चंद हर्फ़ कहानी से फिर
काग़ज़ के टुकड़े तकता क्या है





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