वो ग़मो को यूं हवा देते हैं
हम ख़ुशी को भी भुला देते हैं
जोड़ने की दिलों की ख्वाहिश में
हम ग़मो को भी भुला देते हैं
कम नहीं वो खुदा से भी यारो
जो के बिछड़ो को मिला देते हैं
ज़ात मज़हब की सियासत में ही
वो हमें खूब लड़ा देते हैं...-
पछतावा अतीत नही बदल सकता,
और चिंता भविष्य नहीं
संवार सकती
इसलिए वर्तमान का आनंद लेना ही
जीवन का सच्चा सुख है...-
ख्वाबों के पीछे
जिन्दगी इतनी उलझा ली
की हकीकत में रहने का
सलीका ही भूल गए...-
जैसे जैसे लड़की बड़ी होती है
उसके सामने दीवार खड़ी होती है
क्रांतिकारी कहते हैं
कि दीवार तोड़ देनी चाहिए...
पर लड़की है समझदार और संवेदनशील,
वह दीवार पर लगाती है खूँटियाँ
पढ़ाई लिखाई और रोज़गार की...
और एक दिन
धीरे से
उन पर पाँव धरती दीवार की
दूसरी तरफ़ पहुँच जाती है...-
क्या करेगी वो जानकर अपने अधिकार
जबकि उसे बखूबी पता है
जरा सी आवाज ऊँची करते ही
रिश्ते टूट जायेंगें
परिवार बिखर जायेगा
माँ बीमार हो जायेगी
बाबा चुप्पी ओढ लेगें
भाई आँखें चुराने लगेगा
रिश्तेदार मुँह मोड लेगे
मुहल्ले में कानाफूसी शुरू हो जायेगी
समाज आँखें दिखाने लगेगा...-
मिलना था इत्तिफ़ाक़
बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
मैं उस को देखने को तरसता ही रह गया
जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था
बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे
घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था...-
मैं ने देखा है जो मर्दों की तरह रहते थे
मसख़रे बन गए दरबार में रहने के लिए
ऐसी मजबूरी नहीं है कि चलूं पैदल
मैं ख़ुद को गरमाता हूं रफ़्तार में रहने के लिए...
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तेरी दुनिया में नहीं रहता था
फिर भी मैं तुझमें कहीं रहता था,
चांद तारे थे तिरी ज़ुल्फों में
मैं भी बादल सा वहीं रहता था,
ये जो वीरान सी आंखें हैं तेरी
मैं बहोत पहले यहीं रहता था...
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