Tilak R. Talukdar  
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Joined 21 December 2016


Joined 21 December 2016
15 DEC 2024 AT 22:20

पहले मैं मेले में जाता था,
जाता था बाज़ार वो खिलोने लाने,
पिता ने कभी टोका नही,
मां ने कभी रोका नहीं,
अब मैं बड़ा हो गया हूं,
जाता हूं दफ्तर अब तनख्वाह कमाने,
वही बाज़ार वाले रास्ते,
लगता है सब बदल गया है,
मगर मेला तो आज भी लगता है,
खिलौना तो आज भी मिलता है।

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21 MAY 2023 AT 9:41

बारिश, गर्मी, सर्दी या तूफान,
कभी दौड़ भाग से राहत मिलेगी क्या,
इस भागती हुई जिंदगी में जो है सुकून,
वो एक प्याली चाय मिलेगी क्या।

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25 MAR 2023 AT 23:49

मैं कभी अकेला तो नही था,
फिर भी यूं अकेले जीता रहा,
उसी दौरान कुछ रिश्ते बिगड़े कुछ टूटे,
बिगड़ी बनाता रहा और टूटे हुओं को सीता रहा।

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4 MAR 2023 AT 23:46

कोई परिंदा उड़ने से नहीं डरता,
वो आसमान भी उसका सगा नहीं,
टूटता तो हीरा भी है तराशने के वक्त,
यूं ही कोई हीरा कोहिनूर बनता नहीं।

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5 FEB 2023 AT 15:38

दुर्व्यवहार और दुर्विचार का जवाब अगर दुर्व्यवहार और दुर्विचार के साथ दिया जाए तो सद्व्यवहार और सद्विचार का अस्तित्व एक प्रश्नाचिन है।


- तिलक आर तालुकदार

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1 JAN 2023 AT 21:02

सुबह तयार होके रोज़ निकल जाता हूं दफ्तर,
पीछे छोड़ जाता हूं अख़बार पड़ते हुए बाबूजी को,
छोड़ जाता हूं खाना बना रही मां को भी,
समझता हूं फिर भी रोज़ निकल जाता हूं दफ्तर।

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13 DEC 2022 AT 23:19

क्यों कभी तो ये आसमां भी कम सा लगता है,
क्यों कभी ये ठंडी हवाएं भी सुकून नहीं देती,
मैंने कोशिश तो बहुत की फिक्र से दूर हो जाऊं,
सोचता हूं गुमशुदा बनके इस भीड़ में खो जाऊं।

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10 MAY 2022 AT 0:13

दुनिया तो प्रेम पत्र में बस जायज़ मोहब्बत ढूंढती है,
मगर कागज़ और कलम की नाजायज़ कहानी हज़ारों सवाल पूछती है।

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22 APR 2022 AT 23:39

ना ही कभी रुका है और ना ही कभी थमेगा,
तेरा और मेरा ये कारवां यूं ही चलता रहेगा,
जानता हूं इस सफर में कुछ कांटे भी तो होंगे,
फिर भी इस गुलज़ार में हर गुलाब यूं महकता रहेगा।

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7 APR 2022 AT 0:23

मोहब्बत तो ताज महल है और मक्का मदीना भी,
इबादत अल्लाह है और किसी की महबूबा भी,
हमारी मोहब्बत और इबादत की तो क्या ही कहे,
वो तो मीठे इज़हार में है और लंबे इंतेज़ार में भी।

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