तुम्हें
भूलाने
भी न हो
मयकशीं
नशा तो
तुम ही
हो
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मेरे
हम नशीं-
बहुत कुछ सीखना चाहती हूँ
बहुत कुछ लिखना चाहती हूँ
ज़िन्दगी का नशा अपने... read more
यूँ ही ताउम्र बरकरार रहे मस्ती,शरारतें,याराना और अपना प्यार
मुबारक हो मेरे हर दोस्त को दोस्ती का ये प्यारा त्यौहार-
हम दूसरों के दिखाए राह पे चलने वाले कहाँ
खु़द का अलग रास्ता हो जिसपे चले ये जहाँ
अभी तो इब्तिदा-ए-सफ़र ही मुकम्मल किया है
अभी बाकी हैं हासिल करना ख़्वाबों का कारवाँ
मिट्टी से मिल चुके,अब काँटों से मिल हैं रहे
ठोकरें मिलेगी,मिलेगा कामयाबी का आसमाँ
न थकना ,न रूकना है बस चलते जाना है
हौसलों की उड़ान भर लिखेगे नयी दास्ताँ
चलो"राही" दौड़ते दौड़ते तुम्हें उड़ते जाना है
आख़िरी मंजिल पर हो तुम्हारे क़दमों के निशाँ
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हमारे बीच रिश्ता नहीं खून का
पर राब्ता है दिल से दिल का
वो है माँसी की नन्ही गुड़िया
मेरी तो वो मस्ती की पुड़िया
माँ-बाप से ज्यादा रहे मेरे पास
मुझे दिलाती मातृत्व का एहसास
उसका नखरे करके खाना-पीना
मुझे देखते ही रोना भूल जाना
मेरी बाहों में सदा कांधे पर सोती
होंठ मेरे गालों पर रख मुझे चुमती
उसके आगे भूल जाऊ सारा जहाँ
वो है जैसे मेरी बेटी और मैं माँ-
तुम्हें भूलाने भी न हो मयकशीं
नशा तो तुम ही हो मेरे हम नशीं
सावन चल रहा बुझी ना प्यास
अधरों से बरसा मेघ भर दे साँस
याद आए आलिंगन की गर्माहट
मेरे बैचेनी को कैसे मिले राहत
तन,मन पर हैं छपे तेरे निशान
बेजान है शरीर भर दे मेरे प्राण
कब होगा ये लुका छुपी का अंत
विराहग्नि में जल बन जाऊ संत-
गहनों से नही लफ्जों से सजती हूँ
जज़्बातों की स्याही से मेहंदी रचाती हूँ
मैं कोई अहल-ए-सुख़न तो नही पर,
अपना ख़्वाबों का किरदार समझने लिखती हूँ
एहसासों की माला पिरोकर पहनती हूँ
काली किल्क़ से ख़्वाबों का काजल भरती हूँ
शायद अब मैं बहुत ज़्यादा सज-सवर चुकी
इसीलिए चेहरे पर अंत की बिंदी लगा देती हूँ-
औरो के लिए तुम बिछाओ छल कपट का खेल
क्या पता एक ना एक दिन ये खेल ले जाए जेल
किसी के श्राप से तो नही पर ख़ुदा से तो डरो
जब वो खेलेगा तुम्हारे साथ तो कैसे पाओगे झेल?-
उफ्फ ये अदा और लब-ओ-रुख़सार का नूर
ख्वाबों में बसने वाली लगती है जन्नत की हूर-