देश चैन से सोता रहा
एक बेटी की चिता जल गई
निर्भया हमे माफ करो
इंसानियत आज फिर्से मर गई
तीन साल की बच्ची से लेकर
साठ साल की महिला ने भी ये पीड़ा उठाई है
वाह रे भारत हमने क्या खूब इंसानियत दिखाई है
पुरुष जाति को भी सत सत नमन
उसनें यहां भी अपनी इज्जत चालाकी से बचाई है
इस गन्दे दुष्कर्म का कारण भी छोटी ड्रेस बताई हे ।
चमकते सेहर की विशेषताएं तो बहुतों ने बताई हे
क्या इनकी खामियां कभी किसी ने गिनवाई हे ?
दुर्गा , काली ,भारत , गाय हर रूप में महिला कि इज्जत की ढोंग हमने दिखाई हे
और जब सच में कोई महिला आए तो हमने अपनी असली औकात दिखाई हे ।
महिला कि कमजोरी नहीं
हमने पुरुष की नामर्दगी और सच्चाई दिखाई हे ।
कहने को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना हमने चलाई हे
मगर क्या यही दिन देखने बेटियां इस दुनिया में आईं हे ?
निर्भया हमे माफ करो
इंसानियत की आज फिरसे मृत्यु आईं हे ।-
Someone makes me laugh
Someone makes me cry
Someone makes me smile
Someone makes me feel that she is only mine-
टूट चुका हूं मै अंदर से
खुद से ही हार गया हूं
लरने की अब शक्ति नहीं
शान्ति से सोना चाहता हूं
हर गम झेल चुका हूं
हर आसुं रो चुका हूं
छोटी सी उम्र में ही
दुनिया समझ चुका हूं
लरने की अब शक्ति नहीं
शान्ति से सोना चाहता हूं
माँ अब मै तेरे पास आना चाहता हूं ।।-
When someone share their pain, its not compulsory to give them suggestions every time, sometimes a "positive vibe" and "its alright, everything gonna be okay" is all what they need and it would work magically.
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अपने मन कि बात को शब्दों में रखना ही एक सहारा है
भारी दिल को हल्का करने के लिए मुझे मिला एक किनारा है-
टूट चुका हूं अंदर से इच्छा नहीं है कोई अब
हार गया हूं खुद से ही बचा नहीं है कुछ अब ।
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रिश्तों के बनने का कारण अक्सर प्यार होता है
मगर उन्ही रिश्तों के अंत का कारण अहंकार होता है ।
*(अहंकार = EGO)-
इंसानी चुक या प्रकृति का प्रहार है,
मौन होकर , कायनात में हाहाकार है ।
सोच से पड़े यें कर्मो की सजा मुकम्मल हुई है,
ऐ मानव! तुझे सब सहर्ष स्वीकार है ।
प्रगति पथ पे अब धीमी तेरी रफ्तार है,
थोड़ा और ठहर जा !
सुन करतल ध्वनि, मीठी लहरों की धार है ।
खाकी वर्दी में खड़े रक्षक बने वो भी भगवान का अवतार है,
तू भला क्यों उस रक्षक को मारने बेकरार है ।
सफेद कोर्ट पहने भगवान खुद अस्पताल में २४ घंटे तैयार है,
तू क्यों उनके मंदिर मस्जिद गिरजाघर बंद होने से परेशान है ।
भूल जा कुछ पल को की देश कोरोना से बीमार है,
साथ मिलकर लड़, तो इस कोराना की भी हार है ।।-
भुके रह कर भी हमें खिलाया है
सारी रात जाग कर हमें सुलाया है ।
अपने दुख अपने आसुओं को हमसे छुपा लिया
हमारे सारे दुख को अपने अंदर बसा लिया।
खुद के सपने मार कर हमको उर्णा सिखाया है
खुद पानी में डूब गए मगर हमें तैरना सिखाया है।
ए माँ तू क्यों हमारी खुशी में अपनी खुशी मनाती रही
खुद भगवान होकर क्यों मंदिर हमें दिखाती रही ।।
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