जिन कोशिशों से तुम हँसने लगे थे यूँ खिलखिलाकर उन्हीं हरकतों को किया जब मैंने शीशे के सामने जाकर, तब पता चला कि कहीं न कहीं मेरा बचपन अब भी मुझमें बाकी है...
अब लगता है शायद हम हार गए, उस वक़्त से उस मौसम से उस पहर से हर एक उस लम्हें से जिसमें तुम रहते थे जिसमें तुम्हारी मुस्कुराहट थी जब तुम इत्र सा महका करते थे... वैसे कशमकश आज भी बाक़ी है बेचैनी अब भी साथी है, आँखों के मध्य में आज भी चल रही तेरी ही झाँकी है...