खोल कर हर पन्ना जिंदगी की किताब का
थमाया जिन हाथों में..
जलाकर पर अपनों ने ही जख्मी कर दिया।
वादा कर वफा का हाथ थामा था जिन हाथों ने..
देकर के धक्का उन्होंने..
हमें दुनिया से बेवफा कर दिया।।-
नहीं रहा हाथों में कुछ.. अब पाने को क्या ?
अपनों ने ही लूटा घर को अब खोने को क्या ?
उम्मीद की ज़िद भी हुई खत्म जबसे..
जिंदा ही जड़ बन गए.. अब मरने को क्या ?-
जिन्दगी में
जिस दिन से फर्क पड़ना
बन्द होता है ना..
उस दिन से सही में
जिंदगी में फर्क आजाता है.!!-
त्यागी खुशियां खुद की..
औरों को देने मान!
मूर्ख वो ना जानता.
यहां न पुनः सम्मान!!-
मेरी मुस्कुराहट को
संभाल कर रखना जनाब
बड़ी मुश्किलों से इन्हें
दुबारा पाया है..-
असल जिंदगी का तो पता नहीं
लेकिन खयालों में भी अकेलापन
बहुत दर्द देता है जनाब!!-
दिखती खामोशी उसकी
भीतर की चीख तुम क्या जानो..
उसकी मुस्कुराहट के पीछे
कभी तो दर्द को पहचानों..!!
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जब जब होता है
तुमसे मिलना..
जिंदगी की किताब में
प्यार भरे लम्हे का
एक और अध्याय जुड़ जाता है।-
जन्म के समय कोरे चित्रपट की तरह
जीवन का हर लम्हा विविध रंग की तरह
और अंत में..
जो कलाकार हुआ वह सुंदर चित्र छोड़ जाएगा
और जिसने जिंदगी से कुछ सीखा नहीं..
युहीं कोरा रह जायेगा..!!-