आज भी तुम्हें देखता हूं तो, जी नहीं भरता,
पर अब इनमें उन दिनों जैसी बात कहां..!
ठीक ही तो कहा है किसी ने..
तुम खूबसूरत थी इसलिए नहीं चाहते थे तुम्हे,
तुम्हें चाहते थे इसलिए तुम खूबसूरत लगती थी।-
उनके करीब हो कर...
खुद पर काबू कैसे रखते है..!
ये हमें पता नहीं..।
और न ही हम जान ना चाहते है,
वो खुदा की बनाई ऐसी चीज है,
जिसे बेकाबू हो कर ही देखना अच्छा है।-
हमारी उनसे बात न हो, ये हमें मंज़ूर है,
मगर उनकी खुशी में हम शामिल न हो
ये हमें मंज़ूर नहीं।
वो रहती होगी व्यस्थ ये कागज़ी दुनिया में शायद,
पर हमारी ज़ुबां पे उनका नाम न हो,
ये हमें मंज़ूर नहीं।
क्या करू, क़िस्मत का ही दोष होगा शायद,
नहीं तो उनकी मर्ज़ी के बिना उनके करीब जाऊं ?
ये हमें मंज़ूर नहीं।-
हम में और तुम में इतना ही फ़र्क़ है कि
तुम्हे शायद फ़र्क़ पता है और हमें फ़र्क़ पड़ता नहीं।-
वो बात कुछ और थी कि तुम मेरे बहोत करीब थी,
ये बात कुछ और है कि अब करीब हो कर भी वो बात नहीं।-
वो जो सो रहे है आलम-ए-बिस्तर में बे-फ़िक्री से
उन्हें पता भी नहीं कितने नींद हराम की है हमने उनके पीछे।-
गुस्सा गुस्सी तक तो ठीक था…।
मगर तुम्हारा यूं बाकियों की तरह
कॉन्टैक्ट्स में सिर्फ एक नंबर हो जाना,
जाना, दिल तोड़ देता है हमारा।-
ये आधुनिक गाड़ियां, ये धूप, ये धुआं
हमें क्या प्रदूषित करेंगी, हमे तो लोगों ने प्रदूषित किया है।-
बार-ए-गुनाह न जाने कब से ढोता रहा
कल तेरी तस्वीर लिए शब भर रोता रहा
क्या हुस्न ओ अदा क्या जमाल-ए-यार था
जो भी उस साएं में गया बस लेटा रहा-
जुनूनियत भरे इश्क़ का एक ही हश्र होता है,
या तो उसे पागल घोषित कर दिया जाता है
या तो वो मुकम्मल हो जाता है।
मगर मरता कभी नहीं न ही बदलता है।-