दुःख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता ,
पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तक
क्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता ,
मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता ,
इस छोटे ज़माने के बड़े कैसे बनोगे
लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता ,
ढूँढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने
आँसू को मेरी आँख में आना नहीं आता ,
तारीख़ की आँखों में धुआँ हो गए ख़ुद ही
तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता ।।
~ वसीम बरेलवी-
अपने भी जब छोड़ चले हैं,
रिश्ते नाते तोड़ चले हैं,
करुणा-ममता मोड़ चले हैं
किससे फिर अब प्रीत लगाऊँ?
~ सच्चिदानंद प्रेमी-
जिंदगी में कुछ रिश्ते ऐसे भी बन जाते हैं,
जिन्हें हम समझते तो हैं पर समझना नहीं चाहते।।
~ गुलज़ार-
कभी कभी इरादा सिर्फ दोस्ती का होता है,
पता ही नहीं चलता कि कब प्यार हो जाता है।।
~ गुलज़ार-
आजकल लोग समझते कम और समझाते ज्यादा हैं,
इसलिए रिश्ते सुलझते कम और उलझते ज्यादा हैं।।
~ गुलज़ार-
सितम को रहम, धोखे को भरोसा पढ़ नहीं सकता,
बुरे को मैं बुरा कहता हूँ अच्छा पढ़ नहीं सकता।।
~आफ़ताब अहमद शाह-
चाहे बना दो चाहे मिटा दो
मर भी गए तो देंगे दुआएँ,
उड़-उड़ के कहेगी ख़ाक सनम
ये दर्द-ए-मोहब्बत सहने दो।।
~ हसरत जयपुरी-
दर्द ख़ामोश रहा टूटती आवाज़ रही
मेरी हर शाम तेरी याद की हमराज़ रही ,
शहर में जब भी चले ठंडी हवा के झोंके
तपते सहरा की तबीयत बड़ी ना-साज़ रही ,
आइने टूट गए अक्स की सच्चाई पर
और सच्चाई हमेशा की तरह राज़ रही ,
इक नए मोड़ पे उस ने भी मुझे छोड़ दिया
जिस की आवाज़ में शामिल मेरी आवाज़ रही ,
सुनता रहता हूँ बुज़ुर्गों से मैं अक्सर 'ताहिर'
वो सामत ही रही और न वो आवाज़ रही ।।
~ ताहिर फ़राज़-
इक तेरा हिज्र दाइमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरज़ी है मुझे
एक साया मेरे ताक़ुब में
एक आवाज़ ढूँढती है मुझे
मेरी आँखों पे दो मुक़द्दस हाथ
ये अंधेरा भी रौशनी है मुझे
मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
साँस लेना भी शायरी है मुझे
इन परिंदों से बोलना सीखा
पेड़ से खामोशी मिली है मुझे
मैं उसे कब का भूल-भाल चुका
ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे।।
~ तहज़ीब हाफ़ी-
अपनी मर्यादाओं का गुणगान करते रह गये,
देशहित में देश का नुकसान करते रह गये,
कोई उसको प्रेम की चादर ओढ़ा कर ले गया,
और हम संबंध का सम्मान करते रह गये।।
~ अज़हर इक़बाल-