The Khushi Dhangar   (The Khushi Dhangar)
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Instagram Account: @thekhushidhangar
Joined 12 March 2019


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1 SEP 2021 AT 14:47

ऐ वक्त ज़रा धीरे चल
कि बहुत पीछे रह गई हूँ मैं

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4 MAY 2021 AT 20:49

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26 NOV 2020 AT 18:30

मन में सदा
शांति होनी
चाहिए,
अधिकांशतः
हम शोर में
स्वयं को सुन
नहीं पाते।

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25 SEP 2020 AT 23:22

अधूरी रह जाती है जिन
लेखिकाओं और लेखकों की आकांक्षा,
तो वह उस अधूरी आकांक्षा को
पूरा कर लेते हैं
अपनी कविता और कहानियों में।
मिल जाएंगे तुम्हे ऐसे कई लेख,
जिसमे किसी ने पूरी की है
अपनी अधूरी प्रेम कहानी
तो किसी ने पूरी की है अपने अन्दर हुई
आत्मविश्वास की कमी ।

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31 AUG 2020 AT 17:25

बचपन वो समय, जब एक पांच रुपए का सिक्का मिलने पर हम ख़ुशी से सोचने लग जाते थे कि - 'इससे क्या लेना है' ?





© thekhushidhangar

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27 JUL 2020 AT 2:03

उड़ने से किसने रोका तुम्हें
तुम्हारे आगे किसी का पहरा है क्या

ज़रा ध्यान देना उस पहरे पर
कहीं वो केवल तुम्हारे
मन में ही ठहरा है क्या

जो तुम खुद से नहीं रुकी
तो किसी और का असर तुम पर,
तुमसे भी गहरा है क्या

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26 JUL 2020 AT 10:59

Life is a movie. You are its lead actor. Time is the director who don't let you repeat any shot. So give your 100% to each & every shot.
ACTION.....

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27 MAY 2020 AT 15:31

हमें अपने आज में दुःख दिखाई देते हैं,
और बीते हुए कल में खुशियाँ,
भला ये कैसे सम्भव है?
कुछ कसूर तो हमारे नज़रिए का भी होगा।

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10 MAY 2020 AT 23:05

मुझे सोशल मीडिया पर मदर्स डे विश करते हुए देख, माँ बोली,
ये तुम्हारा इंस्टाग्राम, फेसबुक मुझे कम समझ आता है
अगर अगली बार मुझे मदर्स डे विश करना हो,
तो मेरे सवालों पर, ' माँ आपको कुछ नहीं पता ' की बजाय,
जो बात हो, वो मुझे बता देना,
टेक्नोलॉजी के मामले में थोड़ी - सी कच्ची हूं मैं,
जो अगली बार मुझे कुछ समझ ना आए,
तो ' माँ आप रहने दो ' की बजाय,
मुझे प्यार से समझा देना,
हां माना तुम्हारे पास समय नहीं रहता,
पर जब तुम्हारे पास समय हो,
तो काम में मेरा भी थोड़ा सा हाथ बटा देना,
और हां, हर बार मुझे तुम्हें क्यों कहना पड़ता है कि 'पापा आएंगे तो उनसे तुम्हारी शिकायत करूंगी ',
कभी मेरे एक कहने पर भी मेरी बात मान जाया करना।

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29 APR 2020 AT 23:35

समय बीता, कुछ पौधे पेड़ बने,
और जब उन पेडों पर फल आए,
तो उन फलों ने स्वादिष्ट आहार का सृजन कर दिया,
एक दिन मैं धूप में से अाई थी,
थकी हुई उन पेडों की छांव में जा बैठी,
तो उस छांव ने मेरे तन में ठंडक का सृजन कर दिया,
समय बीता, पेड़ सूख गए, अब उन पेड़ों पर पहले की तरह हरियाली नहीं थी,
फिर भी उन्होंने अपना समर्पण भाव नहीं छोड़ा,
और उस सूखे पेड़ ने मेरे चूल्हे की लकड़ी का सृजन कर दिया,
और जिन बीजों का मैं बावरी सृजन करने चली थी,
उन सृजनकारों ने मेरे जीवन का ही सृजन कर दिया।
- The Khushi Dhangar

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