उसकी मुझसे ये नफ़रत कैसी
वो हर नऐ शख्स के मिलने पर रात करता है
मैं हूँ की उसके सजदे मे रहता हूँ
एक वो है कि जिस्म की ख़ैरात करता है — % &-
गर्दिश में घिरा हुआ था इश्क़ मेरा
हार ना मानता तो क्या करता
बिछड़कर उसको मुझसे चेन नहीं
कब्र कुरबत से न भरता तो क्या करता-
तुम लौट के आओ शायद ऐसा वक़्त नहीं रहा
क्या कहा इश्क़ अरे वो तो बिलकुल नहीं रहा-
है कोई शख्स जो मुझसे मिलना चाहता है
हुई जरा सी रात वो कपड़े उतार कर आता है
ओर एक मैं हूँ के अपने कमरे की बत्ती जलाकर सोता हूँ
ऐ-शख्स तू इश्क़ के नाम पर क्या करना चाहता है
और यह भी सच है कि मुझे मोहब्बत है तुझसे
और एक तू है कि मोहब्बत मे सौदा करना चाहता है
चल मंजूर मुझे रूह मेरी जिस्म तेरा
जा तू जहाँ जाना चाहता है
ओर मेरा महबूब
आज मेरी जिंदगी मे इस कदर रंग लाता है
छोड़ कर मुझमे रूह हमबिस्तर कहीं ओर हो जाता है-
यूँ बिन मौसम तुम मुझपे बरसा ना करो
वक़्त जब मौसम का आएगा भुल जाऔगी तुम मुझे-
मैं कोई मेकैनिक नहीं हूँ साहिब
जो बिगड़ी को बना दू
हालात ऐसे है की बिछड़ना मुनासिब होगा-
मसला यह नहीं की मैं तेरा हो नहीं सकता
मसला तो यह है कि मैं खुद अपना नहीं रहा
और साजिशे तमाम की जमाने ने तुझे मुझसे दूर रखने की
सच तो यह है कि यह मसला अब मेरा मसला नहीं रहा-
सादगी क्या बया करू मैं उसकी
वो आँखों से कत्ल ढाती है
खूबसूरत हैं वो इतनी
ना जाने चश्मा क्यों लगाती है
ओर आँखें गर देखूं मैं बिन चश्मे उसकी
तो देखकर मैं दंग रह जाऊ
छुः लूं तो मैं तंग रह जाऊ
और काश उस वक़्त झपकाए वो अपनी पल्के
देख कर इस नजारे को कहीं मैं मर न जाऊ
इससे पहले वो सावधानी कर लेती है
दरअसल वो अपनी आँखों को चश्मे से ढक लेती है
ओर ऐसा नहीं है कि
मैंने उसकी नग्न आँखों को देखा नही है
देखा कई दफा है लेकिन वो मंजर कुछ और होता है
जब हम होते है बिस्तर पर साथ
तो अन्धेरा घन घोर होता है-
शायद तबीयत से नहीं है मुझे भुलने वाला
यूँ आधी रात को उसका ख्याल
महज एक ख्याल नहीं है-
दर बदर भटक रहा है वो ना जाने किसकी तलाश में
जिसका किसी जमाने में मुझसे तालुक रहा है-