प्यार वह जो जिस्म से होकर,
रुह में उतर जाए।
क्या खूब छला,
कृष्ण ने राधा को।
रुक्मिणी को सब कुछ दिया,
राधा को बस बदनाम किया।
मीरा बावरी भई कृष्ण की चाहत में,
न जग मिला न जगन्नाथ ही।।
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जिसको समझा फरिश्ता,
वह एक शैतान निकला।
मतलबपरस्तों की दुनिया में,
वह एक कहानीकार निकला।।— % &-
मैं उसे बदनाम कर देना चाहता हूं,
उसके धोखे का इनाम देना चाहता हूं।
वक्त ने छीन ली मेरी मासूमियत,
मैं ज़माने को उसका गुनहगार देना चाहता हूं।।— % &-
मेरी डायरी के काले पन्ने,
काली स्याही से लिखे गए।
न चाहते हुए मेरे,
वक्त की नासमझी में रंग गए।।-
खुद को बेदाग रखना चाहा,
दाग थे कि लगते चले गए।
जमाने से छुपाया इनको मगर,
ये थे की नजरों में बसते चले गए।।-
जीत हमेशा जरूरी नहीं,
हार का अपना ही मजा है।
जीवन से श्रेयस्कर मृत्यु,
जो जानता वही विजेता है।।-
सुन्दरे सुन्दरी सीता,
सुन्दरे सुन्दरः कपिः।
सुन्दरे सुन्दरी वार्ता,
अतः सुन्दर उच्यते।।-
किसी की दुआओं ने,
बादलों का रुख बदल दिया।
जिसे बरसना था कहर बनकर शहर पर,
मायूस वो मेरे दरवाजे से लौट रहा था।-
प्यार की चाहत ने हमें,
हर उस चौखट पर ला खड़ा किया।
उम्मीद थी हमें जहां,
प्यार मिलने की।
मेरी बदनसीबी ने मेरा,
वहां भी साथ न छोड़ा।
मंजूर न उसे मेरी कोई खुशी भी।।-
अपनों से सॉरी कहना पड़े,
तो वे अपने कैसे।
अपनों से थैंक्यू कहना पड़े,
तो वे किस बात के अपने ।।
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