तुमने दामन छुड़ा लिया बेवफा कह कर
लेकिन
तू आज भी मेरी पहली नज़र में कैद है
चिलमी-
सुनसान जैसे शमशान
बस तेरी चंद यादें
और तेरे कुछ एहसान
बस यही मिलकियत है मेरी
और ... read more
तुम्हारा पर्दा हटाना खिडकी से
और वो चेहरे पर धूप पडने से
मेरी नींद उचट जाना
फिर मेरा तकिया रखना खुद के चेहरे पर
और तेरा पूछना फिर " चाय बना लूँ "
बस यही इश्क है
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एक दिन अलविदा कहोगी तुम
वो अंतिम मिलन और स्थाई विरह की शुरुआत होगी
तब शुरूआत होगी सुलगने की मेरे
ज्यों सुलगती रहती है एक गीली लकडी
शनैं शनैं बढती रहती है अपने राख होने की और
कुछ इसी तरह सुलगता रहूँगा मैं भी
आत्मा शरीर छोड कर निर्वाण पा चुकी होगी
शरीर में प्राण होंगे सजीवता होगी
लेकिन अंदर सुलगते सुलगते सब खत्म
रह जाएगा चमडी का लबादा औढे एक कंकाल
क्योंकि मैं तब मैं नहीं रहूँगा
मैं मैं नहीं रहूँगा
क्योंकि तुम जा चुकी होगी
मेरी आत्मा अपने साथ लेकर-
करो मातम जो मेरे मरने का
तो थोडा खुल कर करना
मरी देह पर हँसते चेहरे पर मेरे
थोडा हँस कर मरना-
मल कर भभूत बदन पर
कुछ यूँ मैं दिगंबर हो गया
कुछ का मैनें त्याग किया
और बाकि सब मेरा खो गया-
कुछ तुम बदली कुछ मैं बदल गया
देग के यूँ तुझको मेरा मन बहल गया
यूँ तो नहीं तुम हाथों की लकीरों में
पाया जो इश्क तेरा जिंदगी का मकसद बदल गया
रहता था नशे में हर वक्त
फिरता था दर ब दर जिस्मों की चाहत में
थामा जो इक बार हाथ तेरा
सच
मेरा आवारा दिल बदल गया-
रंजो गम की स्याही से इक बात लिखूँ
क्या हैं क्यों हैं कैसे हैं मेरे हालात लिखूं
इश्क है मुझे उस से और उसको भी मुझसे
क्यों मैं बार बार ये बात लिखूँ-
रूबरू आऔ मेरे मेरा हाथ थाम लो
कब तलक खयालों में दिल पर दस्तक दोगे-
किस्सा हमारे इश्क का मशहूर है गली गली
मिजाज सुलगा है जिनका वो फिकरे कसते रहें-