Thakur Sumit Rana   (राणा)
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Joined 22 October 2020


Joined 22 October 2020
27 AUG 2021 AT 18:42

सनम,
इतना नादान न समझो हमें
कई बार डूबे हैं इश्क़ में
मजबूरियां संभाल लेती हैं,
कश्तियां पहचानती हैं हमें
किनारे निकाल देती हैं,

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23 JUL 2021 AT 15:03

ए ख़ालिक़ मुझे सबब-ए-रहजन-ए-गम बना,
इस खातिर की आरज़ू है उसे मसरूर देखना।

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26 JUN 2021 AT 14:59

तुझे देखकर चाँद भी पर्दा करले,
तू इतनी कातिल है कि हजारों फिदायीन तेरा सज़दा करलें।

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22 JUN 2021 AT 14:27

हजारों सवाल मिरे बारे मैं,

(नफरत-नफरत सी नही रहती इश्क़ में,
इश्क़ की नफरत के कुछ अलग रंग हैं।)

हालाँकि वो मिरा नाम तलक नही लेते अपनी जुबां से।

उनको जवाब देने बाले जवाब नही देते,
वो मिरा पीछा करते हैं शायद मगर अफशोस आवाज़ नही देते।

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9 JUN 2021 AT 15:34

ये जो बैठाये हैं चारो तरफ हमारे लिए निगहबान,
ये कुछ दिन और रहे तो हम नहीं रहेंगे।

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9 JUN 2021 AT 15:25

वो नासमझ नज़रें झुकाकर,
मिरे इश्क़ का इलाज करता है,
वो जाने-अनजाने हमें, और बीमार करता है,
नज़रें मिलाकर पिलानी होती हैं इश्क़ की खुराकें,
कोई उसे बताये इश्क़ ही इश्क़ का इलाज करता है।

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2 JAN 2021 AT 19:27

ख्वाब देखो,न मुझे देखो
तो समझना ख्वाब ववाली है,
अदब सोचो,न मुझे सोचो
तो समझना सोच ववाली है,
भूलो तो भूल जाना,
मुझे नहीं ववालों को
क्योंकि मेरे इश्क़ की तुम पर वर्षो से पहरेदारी है।

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28 DEC 2020 AT 14:28

होना मुमकिन नहीं औरों जैसा
कमबख्त इस दिल को बेमानी नही आती,
पहले आती थी औरों पर हंसी 'राणा'
अब अपनी हालत समझ नही आती,

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16 DEC 2020 AT 23:10

हाथ बहुत छोटे दिल बहुत बड़ा है मेरा
इसलिए स्वाभिमान फर्श पर पड़ा है मेरा,
दिए सबने हैं धोके,मेरे पास सिर्फ देने को माफी थी
बस इतनी सी बात इस दिल को समझाने मैं नाकाफी थी,
करता तो क्या करता,ये सब कर्मों की मेहरबानी थी
जहां होना चाहिए था होशियार,बहां ईमानदारी की लत पुरानी थी,
हाथ बहुत छोटे दिल बहुत बड़ा है मेरा
इसलिए स्वाभिमान फर्श पर पड़ा है मेरा।

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16 DEC 2020 AT 14:38

मौत आयी थी कल रात,याद है मुझे
उसे मेरी वफ़ा पर शक न था
शक था उसे अपनी वफ़ा पर,की
देखकर साथ मेरी दोस्ती का
वो खुद वेबफा न हो जाये।

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