हाथ बहुत छोटे दिल बहुत बड़ा है मेरा
इसलिए स्वाभिमान फर्श पर पड़ा है मेरा,
दिए सबने हैं धोके,मेरे पास सिर्फ देने को माफी थी
बस इतनी सी बात इस दिल को समझाने मैं नाकाफी थी,
करता तो क्या करता,ये सब कर्मों की मेहरबानी थी
जहां होना चाहिए था होशियार,बहां ईमानदारी की लत पुरानी थी,
हाथ बहुत छोटे दिल बहुत बड़ा है मेरा
इसलिए स्वाभिमान फर्श पर पड़ा है मेरा।
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