जितना भुलाना चाहूँ मैं,
वो उतना ही याद आता है,
बे-ग़ैरत,
उसके ख़्याल हैं,
या मेरा ये दिल,
मेरा दिमाग अक्सर,
इस सवाल में,
उलझा रह जाता है...!!-
दिल के दरवाजे पर,
ताला लगा कर,
मैं क्या करूँगा राज़दाँ,
ये कमबख़्त यार मेरे,
बुलडोज़र लेके घूमते हैं...!!-
बात अलग होती, ग़र जंगलों में खोते,
प्यारी होती, जो किसी के ख्यालों में खोते,
गुनगुनाने की होती, जो निगमों में खोते,
देखने वाली होती, जो नजा़रों में खोते,
झूमने की होती, जो रिमझिम फुहारों में खोते,
सुकून की होती, जो नींद के आगोश में खोते,
मगर अजब लगता है ये देख कर राज़दाँ,
कि यहाँ तो छः फुट के लोग की पूरी दुनिया,
छः इंच की स्क्रीन में कहीं खो गयी है...!!-
हदें...,
ये अनदेखी दीवार हैं,
जो हर इंसान के साथ,
बदल जाती हैं,
कभी ये, हमें दुनिया से,
तो कभी दुनिया को हमसे,
बचाती हैं...
तो चलो राज़दाँ,
आज हम भी,
ये दोहरा रिश्ता निभाते हैं,
हद का एक दायरा अपने लिए,
और दूजा दुनिया के लिए बनाते हैं...-
सच कहूँ मैं राज़दाँ,
तो सच कहने में कुछ नहीं,
बस एक बात ही तो बतानी है,
ये तो सुनने वाले पर है,
कि कितनी मुश्क़िल,
ये बात उन्हें बतानी है...!!-
ये अल्फाज़ भी बड़े दोगले हैं राज़दाँ,
सफ़र पूरा करते-करते कमबख़्त,
अपना मतलब ही बदल देते हैं...!!-
जो नज़रों ने देखा,
वो नज़ारा था राज़दाँ,
जो हमने समझा,
वो हमारा नज़रिया...!!-
आज-कल लोग भी,
अजब बातें करते हैं राज़दाँ,
जो मेरे लिए,
अपनी सोच न बदल सके,
वो चाहते हैं,
कि मैं उनके लिए,
खुद को बदल दूँ...!!-
इंतज़ार और उम्मीद का फर्क़,
मुझे तब समझ आया राज़दाँ,
जब मुझे उनका इंतज़ार तो था,
पर आने की उम्मीद नहीं...!!-