दीवार पर से उतरी हुई तस्वीरों के निशान,
मेरे टूटे हुए रिश्तों की दास्तान सुनाते हैं,
कभी उन जगहों को भरने की सोचूँ,
तो उन हट चुकीं तस्वीरों में क़ैद लम्हे याद आ जाते हैं,
ग़ैरों में कहाँ ये जुर्रत जो हमें दर्द दे सकें 'तेज',
ये ख़िताब तो सिर्फ़ अपनों के हिस्से आते हैं,
दिल टूटने से ज़्यादा ग़म, वादाख़िलाफ़ी देती है,
नासूर बनके वो झूठ इस लाश को चंद सांसें दे जाते हैं।
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