भटकने का खौफ ज़हन से काफ़ी दूर है,
लौट जाने को मेरे पास कोई घर नही,
बज़्म के उजालों मे हक़ीक़त के साये हैं,
कहता है ग़म मेरा तु और यहाँ ठहर नहीं,
जीने का तज़ुर्बा किसी और से क्या ही लें,
नसीहतों से होती है जिंदगी बसर नहीं,
यहाँ ज़िंदा और मुर्दा दोनो ही बेचैन हैं,
जिंदगी बहार ना, मौत कोई कहर नहीं,
तृष्णा ही एक मात्र जिंदगी का फलसफा,
गुम की तलाश है, पास क्या खबर नहीं,
शब्द की गनिमतों का कर्ज़ है निगाहों पे,
शब्दों के फ़रेब से बड़ा कोई ज़हर नहीं,
मशरूफ़ियत का भरम और कितना पाले हम,
गम हर पल यहाँ तनहाई किस पहर नहीं।
एक हड़बड़ी सी है जाने क्यों हर शक्स मे,
इरादे बदहवास हैं, वक़्त को सबर नहीं...
-STERO
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