Tejas Gautam   (STERO)
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Joined 7 January 2018


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22 AUG 2021 AT 23:47

भटकने का खौफ ज़हन से काफ़ी दूर है,
लौट जाने को मेरे पास कोई घर नही,

बज़्म के उजालों मे हक़ीक़त के साये हैं,
कहता है ग़म मेरा तु और यहाँ ठहर नहीं,

जीने का तज़ुर्बा किसी और से क्या ही लें,
नसीहतों से होती है जिंदगी बसर नहीं,

यहाँ ज़िंदा और मुर्दा दोनो ही बेचैन हैं,
जिंदगी बहार ना, मौत कोई कहर नहीं,

तृष्णा ही एक मात्र जिंदगी का फलसफा,
गुम की तलाश है, पास क्या खबर नहीं,

शब्द की गनिमतों का कर्ज़ है निगाहों पे,
शब्दों के फ़रेब से बड़ा कोई ज़हर नहीं,

मशरूफ़ियत का भरम और कितना पाले हम,
गम हर पल यहाँ तनहाई किस पहर नहीं।

एक हड़बड़ी सी है जाने क्यों हर शक्स मे,
इरादे बदहवास हैं, वक़्त को सबर नहीं...

-STERO





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2 JUN 2021 AT 20:50

मेरी करवटों के दरमियां,
हक़ीक़तों के कांटे बसते हैं
वेहमों के गुलाब बसते हैं,
दहकते हुए आफताब बसते हैं,
मेरी उलझनों के जवाब बसते हैं,
ना जाने कितने ख़्वाब बसते हैं,
मेरी करवटों के दरमियां|
मेरी करवटों के दरमियां,
यादों का एक शहर बसता है,
जहाँ सुकून बसता है, जहाँ कहर बसता है,
जहाँ साँसें बसती हैं, जहाँ ज़हर बसता,
जहाँ एक बेबस सा जज़्बा हर पहर बसता है,
मेरी करवटों के दरमियां....

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22 APR 2021 AT 3:46

मैं अपनी ही गलतियों का मारा हुआ हूँ,
जिसको जीतना था उसीको हारा हुआ हूँ।

वेहमों ने ही पाला है मुझको अब तक,
वरना हक़ीक़त को कब मै गवारा हुआ हूँ।

क्यों क्यों क्यों!!! सिर्फ तेरी ही तलाश है,
आखिर क्यों मै इतना आवारा हुआ हूँ।

पहाड़ों की कोख से निकला था एक प्यारा सा दरिया मैं,
खंमखा समंदर सा खारा हुआ हूँ।

हर किसी से मिलता हूँ एक अलग रूप मे मैं,
अकेला हूँ फिर भी बहुत सारा हुआ हूँ।

मै लिख कर हवा मे बहा देता हूँ कविताएं,
काश तु पढ़ ले के क्यों मैं तुम्हारा हुआ हूँ।

जो हो सकता है बस वही सोच-सोच के मैं,
जो हो रहा है उसका हत्यारा हुआ हूँ।
-तेजस

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10 APR 2021 AT 1:11

किसपे भरोसा हो इस डगर के सिवा,
कोई नहीं है अपना अब सफ़र के सिवा,

क्यों है ज़माने से तुझे हौसले की उम्मीद,
कुछ ना होगा इनसे अगर-मगर के सिवा,

बहुत थका इन बड़े बड़े शहरों मे मगर,
चैन से सो ना पाया कहीं अपने घर के सिवा,

मुझे जानना हो तो मेरी खामोशियों को पढ़ना,
किताब-ए-ज़िस्त और भी होते हैं नज़र के सिवा,

वो तो अल्मस्त बेखबर है मेरे हाल से,
और मुझे कुछ खबर नहीं उसकी खबर के सिवा,

अब सिर्फ साँसें ही बची हैं मुझमें क्योंकि,
हर चीज़ आज़माइ मैंने ज़हर के सिवा,

वो कभी इश्क़ नहीं कर पाएगा, शर्त लगा लो,
उसकी आँखों मे कुछ भी नही है डर के सिवा,

आओ साथ मे देखते हैं मरे हुए पत्तों को,
यहाँ और कोई मौसम नहीं पत्तझर के सिवा...

-तेजस गौतम

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8 APR 2021 AT 12:12

मेरे अंदर रेत सी प्यास है,
उसके अंदर सैलाब,
मेरी हर बरक़त है एक तरफ़,
एक तरफ़ वो टूटा ख्वाब
-तेजस

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19 NOV 2020 AT 2:11

हमारे ऐतमाद के दायरे एक से हैं,
फ़िर कौन सही और कौन गलत,
क्या मौन सही और बोल गलत,
या बोल सही और मौन गलत।

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25 OCT 2020 AT 3:45

मृत होने से बदतर है ज़िम्मेदार होना,
बचपन के जूते उतार कर दुनिया की धूप मे चलना,
नाज़ुक पैरों को अनुभव के छालों से भर लेना,
मृत होने से बदतर है।
लाशों से बदतर हैं,
वक़्त की परत पर खोखली हस्तियों को दर्ज करते लोग,
खड़े खंडरो से बेहतर होती हैं कब्र मे लेटी मौत,
जो ख़्वाब हैं काँच के तो उनका टूटना बेहतर,
बेहतर है टूटे काँच का हथियार होना,
मृत होने से बदतर है ज़िम्मेदार होना,
हवा होकर भी निश्चित आकार होना,
मृत होने से बदतर है ज़िम्मेदार होना।

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24 SEP 2020 AT 13:22

मुझे मेरा कमरा बिखरा हुआ ही पसंद है,
एक अनोखा सा ढन्ग है इसके बेढन्ग होने मे भी,
वैसे ही जैसे आसमान मे बेढन्ग बिखरे तारों मे से उभर आती हैं नक्शत्र कि आकृतियां,
और फ़िर हमारी नज़रें हरबार वही ढन्ग तलश्ती हैं।

तर्तीब के गुलाम इंसान जैसे दुत्कारते हैं बेतरतीबी को,
कहाँ जाएँगे वो जब थक जाएगी सभ्यता उनकी?
शायद अपने-अपने बिखरे कमरो में।

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7 SEP 2020 AT 4:57

पलकें हो चली हैं सर्द, अब तुम ख्वाब जला कर बसर करो,
इन उजले पोशाको पर, तुम राख लगा कर बसर करो,

किसी चिंगारी के तुम पिता बनो, करो बालिग उसको सीने मे,
हाँ तब तक थोड़ा सब्र रखो, रगो में बर्फ़ गला के बसर करो,

हुए सपने बहुत से चूर माना, नाम कालीखो में गुम हुआ,
तुम स्विकारो गुमनामि को, अब अपना काम दिखा कर बसर करो,

तुम नही हो तित्ली, कोई बात नही,क्यों गुम होना है बागों में,
बेहतर होगा जुग्नु बनो और राह दिखा कर बसर करो|

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4 SEP 2020 AT 3:43

आज फ़िर राह देखते देखते सो गए मेरे सपने,
नींद तु फ़िर आज वादा करके नही आई|

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