शीर्षक - उलझन
क्यों रूठे हुए हो, यू हमसे,
वो मीत मेरे, कुछ बोलो ना,
यू उखड़े हुए हो क्यू हमसे,
वो प्रीत मेरे कुछ बोलो ना,
गुमसुम मन जुबां खामोश,
इस तरफ है हम, उस तरफ हो तुम,
होठों में शिकवा मन में उलझन,
मन मीत मेरे, ज़िद्द छोड़ो ना,
क्यू.........
क्यू रूठे हुए हो,.........
वक्त की तन्हाई, सौदागर बड़ी है,
उल्फत पे मेरे आड़े खड़ी है,
इन उलझनों से अब मेरे खेलों ना,
क्यू रूठे .........
सागर सी प्यासी, पड़ी मैं कबसे,
दो घूट प्याला चाहे दिल तुझे,
अब पास आ मोहब्बत के जाम घोलो ना,
क्यू.........
गुमसुम जो तुम हो, जग लागे तन्हा,
मोहब्बत की दो बात अब बोलो ना,
क्यूं रूठे.....
तेज देवांगन
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