जो जाग कर भी सोया रहा,
मैं आज सोआ तो यूँ जागा हूँ,
आज कांधों पे जिस दर लाया गया,
उस दहलीज से मैं कितना भागा हूँ,
खुद्दारी कब नाशुकरी में तब्दील हो गई,
आज उसका हिसाब लगाता हूँ
ना शिकवा ना माफीनामा,
बस परवरदिगार तुम्हारी नवाज़िशें चाहता हू,
कभी जिस्म जहाँ झुका नहीं
आज वहाँ पर रूह झुकाता हूँ,
कल तक जो ला इल्म यकीनन चलता था,
मैं अपनी इस गुमशुदगी का तुमको रहनुमा बनाता हूँ,
मेरे मरने की दास्तान खतम,
वो मुझे फलाह के राज़ बताता है,
बद् वजा, बेकायदा है रुह अपनी,
ये आर्जी रूप बस तजुर्बा चाहता है,
है सिलसिला ये कायनात का,
शक्स पैदाइश पे अपनी रबानी भूल जाता है
जो अज़ली अमन और ख़ुशी इस मद्दा परस्ती में ढूंढता,
वो सब अपनी फलाह मे पाता है।।
- Kartikeya and Tavneet
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