Taufique Ali Khan Mokashi  
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Joined 7 July 2020


Joined 7 July 2020

कुछ ना बोलकर भी वो
आँखोंसे हाल-ए-दिल केह गया
एहतराम-ए-मुहब्बत मे
मैंने अपनी नज़रों को झुकाए रक्खा

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मैं बदनसीब मुड़कर ना देख पाया
उसने इशारे से मुझे रोकना चाहा था

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रात का त'अल्लुक़ नींद से होता अगर
रातों के मारे दिनमे सोते नज़र ना आते

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जिंदगी से शिकायत कैसी इतना नादान नहीं
जिंदगी देनेंवाले तुझको मानकर ही दम लूँगा

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रात से मुराद नींद नहीं होतीं
कई राते हमने जागकर गुजारि
सोजातें हैं लोग थकान मिटाने को
हमको आराम भी रास ना आया

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रात अक्सर होती है सुकून-ओ-आराम के लिए
हमको तो रातों ने जगाए रक्खा इसी इंतिज़ार में

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मौत के बाद सब खत्म हो जाता हैं
कौन कौन याद करेगा देखा जाएगा

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मौत बर-हक़ हैं कौन मना करता हैं
पेहले जी तो लूँ फ़िर देखा जाएगा

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ना जिंदगी से गिला हैं ना मौत से शिकायत हैं
ना जिंदगी ने जिने दिया ना मौत ने मरने दिया

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जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
चैन से जीते तो कुछ और बात होतीं
जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
सुकूँ से मरजाते तो शिकायत ना होतीं

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