Taufique Ali Khan Mokashi  
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Joined 7 July 2020


Joined 7 July 2020

मौत के बाद सब खत्म हो जाता हैं
कौन कौन याद करेगा देखा जाएगा

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मौत बर-हक़ हैं कौन मना करता हैं
पेहले जी तो लूँ फ़िर देखा जाएगा

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ना जिंदगी से गिला हैं ना मौत से शिकायत हैं
ना जिंदगी ने जिने दिया ना मौत ने मरने दिया

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जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
चैन से जीते तो कुछ और बात होतीं
जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
सुकूँ से मरजाते तो शिकायत ना होतीं

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अश्क़ बेहते हैं तो बेहने दो
आँखों मे थोड़ीसी नमी रेहने दो
जमीं-ए-कल्ब बंजर हुई जाती हैं
आँसुंओ से ही सही सैराब होने दो

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तेरा दिया हर दर्द भी इनायत हैं
जो मिला हैं तेरे दरसे गनीमत हैं

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तु बेनियाज़ हैं जो तेरी शान के मुताबिक़ हैं
मैं नियाज़मंद हूँ मुझ पे नज़र-ए-क़रम फरमा

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बग़ैर मांगे ही सबकुछ अता किया तुने
इलाही तु बता कैसे शुक्र अदा करूँ तेरा

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रौशन रहे चराग़ कबरों पर सरेरात मगर
अंधेरा तो कबरों मे था किसको थी ख़बर

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रौशनी मुहोब्बत की हिजाबों नहीं छुपाई जाती
आशिक़-ओ-माशूक़ मीलही जातें हैं हजर के बाद

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