Taufique Ali Khan Mokashi  
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Joined 7 July 2020


Joined 7 July 2020

माना के मायुसी का अँधेरा हैं बहोत
चराग़-ए-ईमान मे लौ अभी बाक़ी हैं

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चार कंधे मिलही जायेंगे मरनेके बाद
जिने के लिये तेरा सहारा काफ़ि हैं
भीड़ होगी रस्म-ए-रुख़सत के लिये
जिने के लिये तेरा साथ काफ़ि हैं

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खुशियों की आदत डालदूँ ग़म की लत छुड़ानी हैं
खुशियों से दोस्ती करलुं भले ग़म से यारी पुरानी हैं

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खुश रेहना सिखों अगरचे हालत खुशगवार ना हों
कमसकम एक लम्हा ही जिलों जो सिर्फ़ तुम्हारा हों

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फूल मुरझा ही जाते हैं कुछ देर के बाद
इसी लिए शायद मुझे काग़ज के फूल मिले
खुशियाँ मुख्तसर ही होती हैं समझना होगा
झुटे दिलासे मग़र कुछ वक़्त सुकून देते हैं

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ग़लत-फ़हमी से ख़ुश-फ़हमी अच्छी
झूटी ही सही कुछदेर तसल्ली रेहती हैं

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दाग़-ए-दानाई से मुझको पाक़ करदे
नादान समझ कर मुझको कुबूल करले

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अग़्यार से उम्मीद-ओ-तवज्जोह फुजूल ठेहरी

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जिंदगी के मंच पे सबको
अपना किरदार निभाना होगा
सुख-दुख मनके खेल हैं
काँटों पे चलकर मुस्कुराना होगा

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जिंदगी को समझने के चक्कर मे ना पड़ना
जिंदगी जीने के लिए कहीं कम ना पड़जाए

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