कुछ ना बोलकर भी वो
आँखोंसे हाल-ए-दिल केह गया
एहतराम-ए-मुहब्बत मे
मैंने अपनी नज़रों को झुकाए रक्खा-
मैं बदनसीब मुड़कर ना देख पाया
उसने इशारे से मुझे रोकना चाहा था-
रात का त'अल्लुक़ नींद से होता अगर
रातों के मारे दिनमे सोते नज़र ना आते-
जिंदगी से शिकायत कैसी इतना नादान नहीं
जिंदगी देनेंवाले तुझको मानकर ही दम लूँगा-
रात से मुराद नींद नहीं होतीं
कई राते हमने जागकर गुजारि
सोजातें हैं लोग थकान मिटाने को
हमको आराम भी रास ना आया-
रात अक्सर होती है सुकून-ओ-आराम के लिए
हमको तो रातों ने जगाए रक्खा इसी इंतिज़ार में-
मौत के बाद सब खत्म हो जाता हैं
कौन कौन याद करेगा देखा जाएगा-
मौत बर-हक़ हैं कौन मना करता हैं
पेहले जी तो लूँ फ़िर देखा जाएगा-
ना जिंदगी से गिला हैं ना मौत से शिकायत हैं
ना जिंदगी ने जिने दिया ना मौत ने मरने दिया-
जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
चैन से जीते तो कुछ और बात होतीं
जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
सुकूँ से मरजाते तो शिकायत ना होतीं-