मौत के बाद सब खत्म हो जाता हैं
कौन कौन याद करेगा देखा जाएगा-
मौत बर-हक़ हैं कौन मना करता हैं
पेहले जी तो लूँ फ़िर देखा जाएगा-
ना जिंदगी से गिला हैं ना मौत से शिकायत हैं
ना जिंदगी ने जिने दिया ना मौत ने मरने दिया-
जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
चैन से जीते तो कुछ और बात होतीं
जिंगदी मौत पर गालिब रही ता'उम्र मेरी
सुकूँ से मरजाते तो शिकायत ना होतीं-
अश्क़ बेहते हैं तो बेहने दो
आँखों मे थोड़ीसी नमी रेहने दो
जमीं-ए-कल्ब बंजर हुई जाती हैं
आँसुंओ से ही सही सैराब होने दो-
तेरा दिया हर दर्द भी इनायत हैं
जो मिला हैं तेरे दरसे गनीमत हैं-
तु बेनियाज़ हैं जो तेरी शान के मुताबिक़ हैं
मैं नियाज़मंद हूँ मुझ पे नज़र-ए-क़रम फरमा-
बग़ैर मांगे ही सबकुछ अता किया तुने
इलाही तु बता कैसे शुक्र अदा करूँ तेरा-
रौशन रहे चराग़ कबरों पर सरेरात मगर
अंधेरा तो कबरों मे था किसको थी ख़बर-
रौशनी मुहोब्बत की हिजाबों नहीं छुपाई जाती
आशिक़-ओ-माशूक़ मीलही जातें हैं हजर के बाद-