Tarun Suthar   (Tarunsays)
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Joined 16 January 2019


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Joined 16 January 2019
2 JUN AT 21:09

बहुत दिन हुए वो शख़्स...
इन आँखों में समाया नहीं...
बहुत दिन हुए हमने भी...
उन आँखों में झाँका नहीं...
संग साथ साथ तो चलता हैं मेरे...
फ़िर भी वो मेरा साया नहीं...
कुछ रूहानी सा रिश्ता हैं उससे...
जो इस जग को कभी भाया नहीं...
~तरुण

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3 MAY AT 22:26

वो गुज़र तो जाता हैं क़रीब से...
बस छू नहीं पाता...
एक आहट सी होती तो हैं आने की...
बस महसूस नहीं कर पाता...
ना जाने कैसा ही कायदा रहा होगा...
इस जगत का...
जो दुनिया हैं तेरी वो ही पास नहीं है...
जो पास हैं तेरे वो पूरी दुनिया नहीं हैं...
~तरुण

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28 MAR AT 4:57

यकीन हैं तू इस दुनिया में मसरूफ़ हैं कहीं...
पास तो हैं नहीं मगर दिल में महफ़ूज़ हैं कहीं...
वो कहते हैं तू इस दुनिया में होकर भी मुझसे जुदा हो गया...
मग़र मैं कहता हूं तू इस दुनिया से परे मेरा सदा का हो गया...
~तरुण

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15 FEB AT 22:21

वो इश्क़ था जो काग़ज़ों में रह गया...
लिखा तो बहुत कुछ बस कहना रह गया...
उम्मींद हैं कि उन तक पहुंचे वो ख़त कभी...
सब कुछ लिखा जिसमें बस उनका नाम रह गया...
~तरुण

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5 FEB AT 21:14

जब इंतजार में सुकूं मिलने लगे...
और हालात में जुनूँ दिखने लगे...
जब समन्दर की रेत पर पड़े...
लहरों से उसके निशां मिटने लगे...
जब मन बाग़ी से बैरागी होने लगे...
और जीवन में आवारगी आने लगे...
जब इश्क और मोह में अन्तर साफ़ दिखने लगे...
तब तुम इस जगत के फ़ेर को समझने लगे...
~तरुण

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15 OCT 2024 AT 22:02

असल ज़िंदगी में तेरा आना अभी बाकी हैं...
इस मौसम का रंग बदलना अभी बाकी हैं...
तू जुदा हैं... ख़फ़ा हैं... बस ये काफ़ी नहीं...
तुझे कविताओं में लिखना अभी बाकी हैं...
~तरुण

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15 OCT 2024 AT 22:02

असल ज़िंदगी में तेरा आना अभी बाकी हैं...
इस मौसम का रंग बदलना अभी बाकी हैं...
तू जुदा हैं... ख़फ़ा हैं... बस ये काफ़ी नहीं...
तुझे कविताओं में लिखना अभी बाकी हैं...
~तरुण

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11 SEP 2024 AT 21:22

एक ख़त हैं जो लिख रखा हैं...
मग़र तेरा पता क्या हैं पता नहीं...
रोज़ जाता हूँ और भेज आता हूँ...
मग़र जाता कहाँ हैं पता नहीं...
सुना हैं लौट आते हैं अक्सर...
वो ख़त जिनका पता नहीं...
मग़र लौटा नहीं एक भी ख़त...
तुझे मिला हैं क्या पता नहीं...
तू ज़वाब दे या लौटा दे ख़त...
या तुझे भी पता मेरा पता नहीं...
~तरुण

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10 SEP 2024 AT 21:26

तू जहां भी हैं इस जहां में महफ़ूज़ रहना...
इन दूरियों और हालातों की फ़िक्र ना करना...
ये दुनिया रिवाजों और कायदों से ही चलती हैं...
तू इन दायरों से मुक्त होकर मुझसे ज़रूर मिलना...
तुझे इस जहां में प्रेम के हक़दार बहुत मिलेंगे...
तुझे दर रोज़ उसकी कीमत भी अदा करेंगे...
तू सच और फ़रेब के फ़ेर में ना उलझना...
तू बस जहां में रहकर इस जहां से इश्क़ करना...
~तरुण

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2 AUG 2024 AT 22:55

रिमझिम बारिश की भी एक अदा होती हैं...
हर शाम के बाद एक रात जवां होती हैं...
हम लौट आते हैं अक्सर उस मैखाने से...
जहा हर वक़्त सिर्फ ज़ाम की बात होती हैं...
~तरुण

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