Tarun Suthar   (Tarunsays)
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Joined 16 January 2019


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Joined 16 January 2019
16 APR AT 23:58

तमाशा हैं ये अपनों का...
तू देखता क्या ये मंज़र हैं...
जो चुभा हैं तेरी पीठ पर...
तेरे अपनों का ही खंजर हैं...
जिससे लड़ा हैं उम्र भर तू...
तेरे मन का ही वो द्वन्द हैं...
जिससे हारा हैं तू इस जग में...
तेरे मन के ही वो अंदर हैं...
~तरुण

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28 MAR AT 6:41

तू हैं तो सब कुछ हैं यहां...
तू मेरी ज़मीं तो मैं तेरा आसमाँ...
कैसे बिठाऊ अपनी पलकों पे तुझे...
तू ही तो मेरे रग रग में बसा...
~तरुण

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18 MAR AT 21:50

तू मीरा सा प्रेम क्यूँ करता हैं...
शायद इसलिए ये जग तुझको ठगता हैं...
यहीं हैं ग़र अफ़साना तेरी जिंदगी का...
तू क्यूँ शायर बनता फिरता हैं...
~तरुण

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4 MAR AT 22:49

अपने पूरे दिन को यूँही गुज़ार देता हूँ यार...
एक नींद की ख़ातिर ये रात गुज़ार देता हूँ यार...
कभी देख तेरी तस्वीर को यादें बुला लेता हूँ यार...
तेरे एक ख़्वाब की ख़ातिर कई ख़्वाब गुज़ार देता हूँ यार...
~तरुण

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3 MAR AT 22:31

अब तक थी जो दबी हुयी आवाज़...
फूटने लगी हैं बन के एक आगाज़...
तू देख अब ये नया सवेरा होने को हैं...
तू देख अब ये घना अँधेरा खोने को हैं...
फैलने लगा हैं अब इस सूरज का प्रकाश...
मिलने लगा हैं अब ईन परिंदों को परवाज...
तू देख ये रुख़ हवाओं का बदल रहा हैं...
तू देख एक सुकूं इस मन में पनप रहा हैं...
एक घटा थी घनघोर जो छुपी थी बादलों में...
तू देख वो बूंद बूंद में टूटकर अब बरस रहा हैं...
एक पहेली बन घेर लिया था इस जीवन ने मुझे...
तू देख वो ख़ुद ही टुकड़ों से जुड़ अब सुलझ रहा हैं...
~तरुण

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21 FEB AT 22:52

मलाल होता हैं...
ग़र कोई ख़्वाब अधूरा रह जाए....
मलाल होता हैं...
ग़र कोई रिश्ता घुटन बन जाए...
कोई फर्क़ नहीं होता अक़्सर...
बेड़ियों और रिश्तों से बने बंधन में...
मलाल होता हैं...
ग़र ये जिंदगी जीना भी एक मज़बूरी हो जाए...
~तरुण

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15 FEB AT 22:23

सूने चाँद को एक तारे का सहारा काफ़ी हैं...
मदहोश हवा को एक जुल्फ का इशारा काफ़ी हैं...
क्यूँ बंधा हैं एक सब्र का समन्दर मेरे भीतर...
घूंघट की आड़ में तेरा मुस्कुराना भी काफ़ी हैं...
~तरुण

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14 FEB AT 23:15

कुछ यूँ थी वो मेरी पहली सी मोहब्बत...
उन जुल्फों ने की थी जब कोई शरारत...
आख़िरी पन्नों में लिखा था उनका नाम...
यहीं था उस ज़माने के आशिक का काम...
आँखों की आँखों से होती थी मुलाकात...
बेचैन थी कुछ धड़कने और ये ख़यालात...
आई हैं क्यूँ आज उस इश्क़ की याद...
लिख दी गई ये नज़्म बस उसी इश्क़ के नाम...
~तरुण

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25 DEC 2023 AT 18:25

आसमाँ में घुला कोई एक राग हैं...
ढलता हुआ सूरज सुर्ख़ लाल हैं...
कहने लगी हैं हवाएँ छूकर मुझे...
वो चाँद तेरा हैं फ़िर क्यूँ मलाल हैं...
मुट्ठीभर रेत हमसे संभलती क्यूँ नहीं...
इस जहां से जाकर पूछना ये सवाल हैं...
इस जगत में हासिल तो कुछ भी नहीं होता...
जो कुछ होता हैं वो कुदरत का कमाल हैं...
~तरुण

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24 DEC 2023 AT 19:42

इश्क़ हुआ हैं जब लहरों से...
तो ये शोर तो गूंजेगा ही...
किनारें भले बागी हो जाए...
ये इश्क़ तो झुकेगा नहीं...
अक्सर टूट तो जाती हैं...
ये लहरें साहिल तक आते आते...
इश्क़ तो था... हैं... और रहेगा...
बता देती हैं साहिल से जाते जाते...
~तरुण

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