Tarun Parashar  
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Medical officer
Health and family welfare department
Government of Himachal Pradesh
Joined 14 November 2017


Medical officer
Health and family welfare department
Government of Himachal Pradesh
Joined 14 November 2017
19 OCT 2021 AT 0:07

एक अलग आनंदमय अनुभव जिसे शब्दों में बयां न किया जा सके बस सिर्फ तुम ही उसे अनुभव कर सकते हो।
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है?

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11 JAN 2021 AT 23:45

तुम शायद मिले नहीं थे उनसे
उनसे मुहब्बत बड़े कमाल की की थी हमने।

बिना शर्त के प्रेम होगा ये शर्त रखी थी उन्होंने
तुम शायद मिले नहीं थे उनसे
उनसे मुहब्बत बड़े कमाल की की थी हमने।

हम एक राह पर साथ चले मगर
तुम शायद साथ नहीं चले उनके
उनसे मुहब्बत बड़े कमाल की की थी हमने।

उनके पास होने का एक अलग एहसास था मगर
तुम शायद इतने पास नहीं थे उनके
उनसे मुहब्बत बड़े कमाल की की थी हमने।

यूं सब कुछ लुट जाना क्या होता है
तुम शायद नहीं जानते मौत कितने करीब थी उनके
उनसे मुहब्बत बड़े कमाल की की थी हमने।

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2 SEP 2020 AT 14:08


बेक़रार दिल इस तरह मिले
जिस तरह कभी हम जुदा न थे
तुम भी खो गए, हम भी खो गए
एक राह पर चलके दो क़दम

- कैफी़ आज़मी

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31 AUG 2020 AT 23:16

चिड़िया का गीत

सबसे पहले मेरे घर का
अंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।
फिर मेरा घर बना घोंसला
सूखे तिनकों से तैयार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।
फिर मैं निकल गई शाखों पर
हरी भरी थी जो सुकुमार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।
आखिर जब मैं आसमान में
उड़ी दूर तक पंख पसार
तभी समझ में मेरी आया
बहुत बड़ा है यह संसार।

- निरंकार देव सेवक
 

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31 AUG 2020 AT 23:07

सबसे पहले मेरे घर का
अंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।

फिर मेरा घर बना घोंसला
सूखे तिनकों से तैयार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।

फिर मैं निकल गई शाखों पर
हरी भरी थी जो सुकुमार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना सा ही है संसार।

आखिर जब मैं आसमान में
उड़ी दूर तक पंख पसार
तभी समझ में मेरी आया
बहुत बड़ा है यह संसार।
 
- निरंकार देव "सेवक"

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20 AUG 2020 AT 6:46

“सुबह“

सूरज की किरणें आती हैं,
सारी कलियाँ खिल जाती हैं,
अंधकार सब खो जाता है,
सब जग सुंदर हो जाता है

चिड़ियाँ गाती हैं मिलजुल कर,
बहते हैं उनके मीठे स्वर,
ठंडी-ठंडी हवा सुहानी,
चलती है जैसी मस्तानी

यह प्रातः की सुख बेला है,
धरती का सुख अलबेला है,
नई ताजगी, नई कहानी,
नया जोश पाते हैं प्राणी

खो देते हैं आलस सारा,
और काम लगता है प्यारा,
सुबह भली लगती है उनको,
मेहनत प्यारी लगती जिनको

मेहनत सबसे अच्छा गुण है
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है
अगर सुबह भी अलसा जाए
तो क्या जग सुंदर हो पाए

( श्रीप्रसाद )

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30 JUN 2020 AT 1:54

हमें आप पर पूरा भरोसा है कि
आप एक दिन हमसे मिलने ज़रूर आयेंगे।
हमें आपका इंतज़ार रहेगा।



- आपकी मृत्यु

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23 JUN 2020 AT 0:53

‌ ॥शांति पाठ॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

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18 JUN 2020 AT 22:00


'रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई
डरता हूं कहीं खुश्क न हो जाए समंदर
राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई
इक बार तो खुद मौत भी घबरा गई होगी
यूं मौत को सीने से लगाता नहीं कोई

माना कि उजालों ने तुम्हें दाग दिए थे
बे-रोत ढले शमा बुझाता नहीं कोई
साकी से गिला था तुम्हें मय-खाने से शिकवा
अब जहर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई

हर सुबह हिला देता था जंजीर जमाना
क्यूं आज दिवाने को जगाता नहीं कोई
अर्थी तो उठा लेते हैं सब अश्क बहा के
नाज-ए-दिल-ए-बेताब उठाता नहीं कोई....

- कैफ़ी आज़मी

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11 JUN 2020 AT 18:44

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता॥

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे॥

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता॥

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं॥

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे॥

- सुभद्रा कुमारी चौहान

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