तुम्हारे झूठे वादों पर हम एक सच्चा वादा निभाएंगे!
हम दिल से आए थे, हम दिल से चले जायेंगे!-
तब क़लम कहे
गुरु गोबिंद दे लाल है!
क्या होगा एक रोज़ जब हम चले जायेंगे!
लोग आते है जाते है हम भी चले जायेंगे!
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इज़हार हमारा आँखों में था ज़बान–ए–आम नहीं
हम भी तो कुछ हैं, हम भी तो कोई आम नहीं!
यूं हमारे आने से आपकी हैसियत बढ़ जाती हैं
हमारी हसरतें ना हो तो आपका कोई दाम नहीं!
मोहब्बत उस शख़्स से करना मौत हैं "तरुण"
तुझे मारने के सिवा उसे भी कोई काम नहीं!
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वो हर इंसान शायर है जो प्रेम करता है!
कोई लिख़ लेता हैं, कोई चुप रहता हैं!
__तरुण नरेश देहलवी-
तुमने उम्र भर इतना आईना ना देखा हैं!
जितना हमने तुम्हें तुम्हारी तस्वीर में देखा हैं!
तुम्हारे बाद ख़ुद को भी निहार लेते हैं
फ़िर औक़त से बाहर हमने तुमको देखा हैं!
क्या माजरा हैं ये तो बता "तरुण"
कभी कभी उनकी आँखों में ख़ुद को देखा हैं!
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प्रेमी "प्रेम" का प्रीत हैं
"मोह" की लगन पतित हैं।
जो नही था तेरा, वो भी तेरा
देना ही "प्रेम" की रीत हैं।
हार जीत तो "मोह" की भाषा
भाषाओं से "प्रेम" विपरीत हैं।
__तरुण नरेश देहलवी
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दिल बरसों बाद किसी को बसा रहा है!
शामत हमारी हैं वो ख़्वाब दिखा रहा है!
दिल है कि बातों का बहाना सोच रहा है
उनके जाने के बाद मुक़म्मल सब याद आ रहा हैं
किस सौदे में फ़िर फस गया "तरुण"
मुनाफा उनका है घाटा हमें आ रहा है!
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माँ की पहचान औलाद से नहीं ममता से होती हैं
क्योंकि हर औरत में एक माँ होती हैं!-
हर एक बारी आती हैं ये भी सच है!
ख़्वाब देखना भी बहुत बड़ी बला है!
कोई रिश्ता नहीं जो बर्दाश्त कर सके "तरुण"
इश्क करने वाला ही अकेला चला है!
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माँ ख़ुद अपने आप में एक दुनियां है
जो ग़लत सही की समझ से बाहर हैं
ममता ही औरत है और औरत ही माँ है
क्योंकि हर रिश्ते में औरत माँ होती हैं!-