प्रेमी प्रेम का प्रीत हैं
मोह की लगन पतित हैं।
जो नही था तेरा, वो भी तेरा
देना ही प्रेम की रीत हैं।
जो हार गये वो मोह के संगी
प्रेम तो केवल जीत हैं।
__तरुण नरेश देहलवी
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तब क़लम कहे
गुरु गोबिंद दे लाल है!
दिल बरसों बाद किसी को बसा रहा है!
शामत हमारी हैं वो ख़्वाब दिखा रहा है!
दिल है कि बातों का बहाना सोच रहा है
उनके जाने के बाद मुक़म्मल सब याद आ रहा हैं
किस सौदे में फ़िर फस गया "तरुण"
मुनाफा उनका है घाटा हमें आ रहा है!
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माँ की पहचान औलाद से नहीं ममता से होती हैं
क्योंकि हर औरत में एक माँ होती हैं!-
हर एक बारी आती हैं ये भी सच है!
ख़्वाब देखना भी बहुत बड़ी बला है!
कोई रिश्ता नहीं जो बर्दाश्त कर सके "तरुण"
इश्क करने वाला ही अकेला चला है!
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माँ ख़ुद अपने आप में एक दुनियां है
जो ग़लत सही की समझ से बाहर हैं
ममता ही औरत है और औरत ही माँ है
क्योंकि हर रिश्ते में औरत माँ होती हैं!-
पितृसत्ता का असर औरतों पर यूं हुआ
कि औरत ही औरत में फ़र्क कर बैठी!
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मात पिता भाव कितना ही स्नेहपूर्ण हो
दुलारा, दुलारी में बट जाता हैं!
गुण कितने ही श्रेष्ठ हो
कमियों में छट जाता हैं!-
नज़रों से नज़ारे ख़ूबसूरत नहीं होते
होते हैं अहसास, चेहरे ख़ूबसूरत नहीं होते-
नज़रों से नज़ारे ख़ूबसूरत नहीं होते
अहसास ख़ूबसूरत हैं, चेहरे ख़ूबसूरत नहीं होते
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जिस मोहब्बत से अजनबियों को भी रंग रहे हो
कल जब आये तो इसी मिज़ाज से मिलना!
होली मुबारक़
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