✍️ᵀᵃʳᵘⁿ ᴮⁱˢʰᵗ   (🎭तरुण बिष्ट)
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Joined 28 December 2017


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फ़ोन पे संदेश भेज के मुझे यूँ ना रिझाया कर
ख्वाहिशें अपनी आ के ख्वाबों में बताया कर
तेरा क्या इज़्ज़त मेरी उतरेगी ज़माने के सामने
बाहर सब बंद है मुझे यूँ मिलने ना बुलाया कर

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सुन तो सही मेरी ज़िंदगी
तुझे आज भी कितना याद करते हैं
तुम कितनी फरियाद करो
हम तो अब ज़िन्दगी बर्बाद करते हैं

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दुआओं में तू और रोज़े ईद में गले किसी और से
तेरे नाम के रखे थे मैंने मिले ये तो सितम है ना

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हम तो दिल में लिए बैठे रहे दीद की उम्मीद
और यहाँ बंद चहारदीवारी में गुज़र गयी ईद

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जो चढ़ा वो चढ़ता चला गया
दिल लगा के ठगा
जो ठगा फिर ठगता चला गया

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अजब खरोंच दिल पर दी उसने बेवफाई से
जितना दर्द लिखता हूँ उतना मजा आता है

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हालातों की जंज़ीर ने चाहतों को जकड़ रखा था
वरना ज़रूरतों ने ख्वाहिशें कभी कम नहीं होने दी

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और हम वहाँ नहीं थे
जहाँ एक रफ्तार थी
पछाड़ने की होड़ थी
बस भागम दौड़ थी
और फिर वही हुआ
सबकुछ थम सा गया
कदम जम सा गया
आया एक ठहराव
ज़िन्दगी बनी घाव
दिखाने को तेरा कल
बताने आहिस्ता चल

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जाने ये कौन सा खेल है तमाशे वाले का
पर्दा गिरा भी नही लोग उठते जा रहे हैं

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लाखों करोड़ों के व्यापार में नहीं मिलता
ख़ुद को बेच के भी संसार में नहीं मिलता
प्यार की सौदेबाज़ी बहुत देखी ज़माने में
माँ का प्यार किसी बाज़ार में नहीं मिलता

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