कोई औधा कोई दस्तार नहीं चाहिए
एक रंग में रंगी हुई दीवार नहीं चाहिए
चाहिए मझे भी इजहार-ए-मोहब्बत मेरे दोस्त
लेकिन इसमें तेरा इंकार नहीं चाहिए
कर रहा हूँ एक मिसरे को ग़ज़ल आहिस्ता-आहिस्ता
और आदमी समझता है परिवार नहीं चाहिए
जिंदगी की आखिरी जंग लड़ रहा हूँ
सिर्फ हौसला चाहिए कोई तीर-तलवार नहीं चाहिए
तारिक़ ने मेरे साथ बगावत कर दी है
अब कबीले को ये सरदार नहीं चाहिए-
कभी कभार लिख लेते हैं "
IITian
IITdhn
POET
Urdu and hindi Poetry writer
... read more
कोई औधा कोई दस्तार नहीं चाहिए
एक रंग में रंगी हुई दीवार नहीं चाहिए
चाहिए मझे भी इजहार-ए-मोहब्बत मेरे दोस्त
लेकिन इसमें तेरा इंकार नहीं चाहिए
कर रहा हूँ एक मिसरे को ग़ज़ल आहिस्ता-आहिस्ता
और आदमी समझता है परिवार नहीं चाहिए
जिंदगी की आखिरी जंग लड़ रहा हूँ
सिर्फ हौसला चाहिए कोई तीर-तलवार नहीं चाहिए
तारिक़ ने मेरे साथ बगावत कर दी है
अब कबीले को ये सरदार नहीं चाहिए-
प्यार से 'प' हटाना है यार बनाना है
तेरे वीराँ दिल का एक हकदार बनाना है
तोड़ देना है भरम परियों की शहजादी का
तेरे हुस्न को हमें सहकार बनाना है
हम-साएगी पर तेरे बहुत नाज़ है हमें
दीवार से लगी हुई दर का दर-ओ-दीवार बनाना है
सुब्ह शाम नफ़रत में झुलसती हुई आंखे देख
हर कहानी में मोहब्बत का एक किरदार बनाना है
अजब फ़ज़ा है सियासत की दौर-ए-हाज़िर में
हमें दो-चार बनाना है, तुझे सरकार बनाना है-
वो sapphire की छत, और अधुरे इश्क के किस्से
उस किस्से में भी बार-बार कट जाना बुरा लगा
वो रात की भूख , और Emerald की maggi
बन्द canteen को रात मे खुलवाना बुरा लगा
वो दोस्तों का प्यार और फिर GPL का वार
पुराने बेल्ट को dustbin में छोड़ जाना बुरा लगा
Junior के साथ आखरी पल और जिस्म पर फूल ही फूल
सारी माला को ऐसे सूखा छोड़ जाना बुरा लगा
ये ISM एक बस्ती , और ये चार साल का सफर
कॉलेज को ऐसे तन्हा छोड़ जाना बुरा लगा-
तुमसे ऐसे बिछड़ जाना बुरा लगा
बिन अलविदा कहे चले जाना बुरा लगा
गले लगने कि ख्वाहिश थी कब से मुझमें
बिन गले लगाए साथ छोड़ जाना बुरा लगा
वो क्लब की मिटिंग फिर Event की तैयारी
Sac के कमरों को अंधेरे में छोड़ जाना बुरा लगा
Exam का माहौल और खचाखच भरी library
Library की कुर्सी को ऐसे खाली छोड़ जाना बुरा लगा
वो रात भर जगना और फिर RD की पहली चाय
चाय की गिलास को ऐसे खाली छोड़ जाना बुरा लगा
वो Senior का call और रात भर का माहौल
शराफत भरी जिंदगी में लौट आना बुरा लगा
-
दूर चले जाएँगे कहीं वन में हम
फिर खनकने लगेंगे तेरे कंगन में हम
याद करेंगे मुझे हर तमाशाई
नजर आएंगे उन्हे दरपन में हम
वो चाँद तारों पर गीत लिखता है
कैसे बस पाएंगे ऐसी जेहन में हम
नदी के उसी तट पर तुफान आ रहा है
जहाँ खुब रोए थें मिलन में हम
आज फिर रो कर कहने लगी ये दुनिया "तारिक़"
बिछड़ जाएँगे फिर इस जीवन में हम-
ये तो जनवरी है नया साल है
दिसम्बर से भी पूछो तेरा क्या हाल है
बताने लगा रो कर वो बुढा फकीर
ये जिदंगी हमेशा से बदहाल है
लहरें हैं गुमशुम दरिया के किनारे
यहाँ भी तो खुशियों का आकाल है
बच्चे खुदा का जिक्र में लगे हैं
लगता है ये तबका सबसे खुशहाल है
मैं रहता हूँ हर शाम तेरी गोद में
मैं ही हूँ वो शख्स जो मालामाल है
एक साल और मिला तेरे हक में तारिक़
मना सको तो मना लो वही बेमिसाल है
-
एक बरस और कट गया इसी उम्मीद में "तारिक़"
कि मेरे हक में कोई गुज़रे जमाने मिलेंगे-
झूठ सच के बीच फ़ासला बताते हैं आप
मुश्किलों से लड़ना सिखाते हैं आप
जब गिर जाता हूँ थक कर किसी मोड़ पर
सर उठा कर फिर चलना सिखाते हैं आप-
कोई शोला बुझाना नहीं चाहता है
कोई दामन जलाना नहीं चाहता है
धुप से पिले पड़ गए प्यासे पत्ते
कोई बादल हँसाना नहीं चाहता है
हर रात फलक से होती है बूंदा बांदी
बादल आसमान को सजाना नहीं चाहता है
दरख्त देखते ही आ जाते है लकड़हारे
कोई पंछी घर बसाना नहीं चाहता है
कितने मुश्किल से जिते हैं मेरे चाहने वाले
उनका शायर आंख मिलाना नहीं चाहता है
मेरे गजलों की बारीकी में छुपा वो शख्स
अपना नाम तक बताना नहीं चाहता है-