Tariq Habib   (तारिक़)
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Joined 21 September 2019


Joined 21 September 2019
14 JAN 2022 AT 8:48

आज की रात गुजार गई,
में कल की फिकर करता हु,
में कोशिश बस यही
में कोशिश बस यही
की
की
उसके ख्यालों को दरगुजर करता हु।

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14 JAN 2022 AT 8:44

अगर इश्क कर सकता तो कब का कर लेता में,
बस मुझे निभाने की आदत कुछ ज्यादा थी।

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14 JAN 2022 AT 8:39

भूल जाने का कुछ अंदाज ऐसा भी हो।
वो पास भी बेटी हो और महसूस न हो।

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13 JAN 2022 AT 13:25

ये चाय ही तो है,
जो हमे खामोश कर देती है,
वरना आग तो हम भी रखते है।

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13 JAN 2022 AT 8:04

बैचेन हू बहूत छटपटा रहा हूं
में अपनी ही कमजोरियों को छूपा रहा हु।
नही मिल रहा मुझे सुकून इस जहान में,
फिजूल ही जिंदगी खर्च किए जा रहा हु ।

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9 DEC 2021 AT 8:06

हक़ छीनने की आदत हो गई है दुनिया को,
खुद से और खुदा से बेखौफ हुए बैठे है।

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3 FEB 2021 AT 17:34

काश कुछ दूर तक साथ हो जाता
मेरा मुकद्दर हि थोड़ा मेरा हो जाता
भर् के सिने मे लिये बैठा हु उल्फते नायब कहीं
गर थोड़ा सा
तेरा इश्क़ मेरा हो जाता।

काश कुछ दूर तक साथ हो जाता।

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23 JAN 2021 AT 22:44

हर शख्स हैं जुदा जुदा
हर रुह में तन्हाई है

इश्क़ हो चुका है गुम कहीं
हर सोच में बेवफाई है

लोग रहते है खौफ में
दुनिया अब कहा बच पाइ है

जो समझते थे खुद को खुदा
अब याद आयी उनको खुदाई है।


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22 JAN 2021 AT 20:29

हम तुम और चाय
चल मेरे यार कुछ पुरानी
गप्शप् हो जाए
कुछ् करें यादों को ताज़ा
और कुछ पुरानी बातें हो जाए
कह दू वो भरा गुबार दिल का
कब ये दुनिया परायी हो जाए।

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21 JAN 2021 AT 7:56

मध्होश् हुए फिर पता चला
होश वालोंं के नकाब हुआ करते है।
जमाना बड़ा कम्जर्फ् है तारिक़्
यहाँ इंसानों के सिर्फ ढोंग हुआ करते है।

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