खुश होने के लिए कोई बहोत बड़ा कारण नही चाहिए
आज समझ आया वो बारिश में कुछ दूर चल लेना ही काफ़ी था-
कुछ लोग पूछते है जिंदगी से क्या चाहिये
ख्वाहिशे जो आसमान में उड़े
उम्मीदें जो बारिश की बूंदों सी हो
खुशियां जो परछाई सी हो
बस इतनी सी ज़िन्दगी-
कुछ तुम सी हूँ कुछ खुद सी हूं
तुम्हारे बिन भी पूरी नही
खुद बिन भी अधूरी नही
ये अजीब सा रिश्ता है हम दोनो में तभी तो
कुछ ख़ाली तुम भी हो कुछ ख़ाली मै भी-
दो चार बातें अभी बाकी थी
कुछ मुलाकाते अभी बाकी थी
वो ठहेर न पाये कुछ पल भी
अजी थोड़ी मोहब्बत अभी बाकी थी-
पंख तो दिया मगर खुला आसमान कहां है
ज़ंजीरें बांधकर केहते हो उड़ान कहां है-
गुनाह किया मैन लो चढ़ा दो सुली पर
हुई पैदा लड़की बनकर लो चढ़ा दो सुली पर
चढ़ा दो उन्हें भी
जिनसे हुई गलती स्त्री जनकर
हां मुझे भी एहसाह है मेरी गलतियों का
दूर बैठी थी मां के आंचल से
बंध के रहना था मुझे मां के आंचल से
वो कुछ मील की दूरी तय कर गई गलतियां मेरी
गुनाह किया लो चढ़ा दो सुली पर....
लो चढ़ा दो सुली पर हुई पैदा लड़की बनकर....
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ये जंग है हमारे वतन की
ये जंग है हमारे वजूद की
न तुम ये हो न तुम वो हो
तुम मेरा ही अतीत हो
वो होते कौन है तुम्हे मुझसे जुदा कहने वाले
वो मुझे बताये वो मेरे होते कौन है
तुम मेरे हो अपने हो
तुम मेरा ही अंग हो
ये जंग है हमारे वतन की
ये जंग है हमारे वजूद की
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