मैंने सोचा,
आज कुछ ख़ास लिखूंगी,
जो आजतक ना लिख सकी,,,
वो अहसास लिखूंगी,,,,
जो हमसे दूर हैं,,,,,
उन्हें अपने पास लिखूंगी,,,,,,
अगर मैं अपनी खुशियां,,,,,,,
दूसरों में बांट न सकी,,,,,,,,,
तो ख़ुद को उदास लिखूंगी!!-
भूल मेरी जो याद दिलाती है,
हर रात मुझे फिर रुलाती है।
जिसको चाहा था जान से ज्यादा,
वो बेवफाई की बात बताता है।
दिल के जख्मों को कुरेद कर,
वो फिर से दर्द बढ़ाता है।
मैं भूल जाऊँ अगर उसे तो,
परछाईं बन के लौट आता है।
खुद से अब मैं क्या कहूँ,
तक़दीर भी मुझसे रूठी है।
जिसे अपना समझा था मैंने,
वो ही मेरी भूल बताता है!!-
यूँ ही नहीं ये खालीपन मुझमें समाया होगा,
मैनें अपने अंदर क्या-क्या दफनाया होगा ?
अब मुझसे कहे भी नहीं जाते हालात मेरे,
शायद खामोशी पर मैंने एक उम्र को बिताया होगा।
क्या मुझे ढूँढने नहीं आया कोई अपना मेरा ?
या खुद को मैंने बहुत एहतियात से छिपाया होगा।
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तू ख़्वाब की तरह सच्चा बहुत था,
धोखा था मगर अच्छा बहुत था,
और तू मेरा था ये गलतफहमी थी मेरी,
शायद मेरे मन्नत का धागा कच्चा बहुत था।।-
ये दिवाली कुछ खास नहीं,
क्योंकि आपके होने का एहसास नहीं।
है लोग वही,है त्यौहार वही,
बस खुशियों का एहसास नहीं।
ये दिवाली कुछ खास नहीं,
आपके होने से एक आम सा दिन भी खास लगता था,
आपके न होने से खास दिन भी आम सा लगता हैं।
ये दिवाली कुछ खास नहीं,
क्योंकि आपके होने का एहसास नहीं।।
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थोड़ी बहुत कमिया होना भी जरूरी है
आखिर इंसान का इंसान होना भी जरूरी है-
मुझे आज भी है मोहब्बत उस इंसान से
जिसकी झूठी हमदर्दियों ने मेरा दिल आ जाने कितनी बर तोड़ा है।-
ये वक़्त का खेल भी कितना अजीब है ना साहब,
जिसके पास हमारे लिए कभी वक़्त ही वक़्त था,
उसके पास आज हमारे लिए वक़्त ही नहीं है।।।
🥺🥺-
हाथों मे मेंहदी आज भी रचाई हैं उसके नाम की।
हाथों मे मेंहदी आज भी रचाई हैं उसके नाम की।
बस फ़र्क सिर्फ इतना हैं की
पहले उसे दिखाने भागती थी,
और आज छिपाने को भागती हुँ।-