।। न कंचित् शाश्वतम् ।।
(Read in the caption)-
A bird's🕊️ unopened wings🦋, which touches your feelings😍...
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जिसकी ज़िंदगी एक ख़्वाब हो,
और मौत भी क्या लाजवाब हो।
शोर-शराबे से दूर कहीं,
रहता जैसे बंद कोई किताब हो।
हर सवाल का जवाब रहे,
पर ख़ामोशी ही उसका जवाब हो।
प्रेम का हो समंदर गहरा,
पर दर्द का भी सैलाब हो।
हँसी का नकाब ओढ़ लिया,
पर आँखों में आँधियों बेहिसाब हो।
रौशनी से जगमग है दुनिया उसकी,
पर अंधेरों में दबा कोई राज़ हो।
रंगों का हो शौकीन बहुत,
पर खुद ही बेरंग बेहिसाब हो।
दिल में तूफान लिए फिरता रहे,
पर दुनिया के लिए बस एक हल्की सी आब हो।
खुद को ही ढूँढता फिरता वो,
जिसे हर मोड़ पे मिलते सवाल बेहिसाब हों।
जिन जवाबों की थी तलाश की उसने,
वही बने अब सवाल लाजवाब हों।
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मैं, तुम और ये साल की आखिरी शाम,
कुछ ख्वाब अधूरे, कुछ पूरे अरमान।
चाय की प्याली, वो धीमी मुस्कान,
सपनों की बातें और दिल का पैगाम।
तुम्हारे संग बिताए पल हरदम खास,
मिलती है हिम्मत, जब थामे तुम्हारा हाथ।
सपनों के रास्ते हों चाहे मुश्किल,
तेरे साथ सफर लगता है आसान।
हर शाम के संग एक नई सुबह आएगी,
मेहनत की रोशनी हर अंधेरा भगाएगी।
तुम्हारा साथ और मेरे इरादे मजबूत,
मंजिलें बुलाएँगी, ये सपने होंगे सिद्ध।
नई शुरुआत का ख्वाब लिए आँखों में,
उज्जवल भविष्य की उम्मीद रखे हाथों में।
आओ मिलकर करें वादा इस शाम,
कि हर दिन को बनाएंगे यादों का मुकाम।
मैं, तुम और ये साल की आखिरी शाम,
चमकेगा जीवन, होगा रोशन हर एक आयाम।
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मैं, चाय और ये ठंड की शाम।
मिल बैठे साथ, छिड़ी एक लंबी बात।
घर का गलियारा था, हाथों में चाय थी,
और सुकून सा था आज मुद्दतों के बाद।
बातें कभी बचपन की, तो कभी ख्वाबों की,
कभी बीती रातों की, तो कभी किताबों की।
हवा में घुला था कोई गहरा एहसास,
जैसे पुराना साथी हो, जो लौटा हो सालो बाद।
धुंधली रोशनी में, खामोशी मुस्कुराई,
चाय की हर घूंट ने रूह को महकाई।
इस पल में सब कुछ था, न कोई कमी थी,
ठंड की इस शाम में, जिंदगी थमी थी।-
कितना मुश्किल है ना, किसी से कुछ कह पाना।
वो भी तब, जब आपके आस पास लोग तो बहुत हों,
पर आपको सुनने वाला कोई नहीं।
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ये रातें, ये तन्हाई, और मेरा कभी ना ख़त्म होने वाला इन्तज़ार।
मिल बैठे सब साथ और छिड़ी एक लंबी बात।
चाय की चुस्कियाँ थी और गमों की पोटलियाँ थी,।
साथ में था, मेरे प्यार का इज़हार।
छत के बीचों बीच, खुले आसमान के नीचे, तारों की चादर ओढ़े, मैंने दोहराई हर एक बात।
जिसे तूने बनाई थी कभी, हमारे बीच की ढाल।
वो ठंडी हवाएँ, कभी मेरे गालों को सहलाती, कभी जुल्फें बिगाड़ जाती, शरारत करके मुझे हर पल भटकाती।
और मैं भी ज़िद्दी, चाँद तारों को एकटक देखते हुए, रात को ख़ामोश सी अपनी कहानी सुनाती।
ये रातें जो हर पल हमारे प्रेम की साक्षी रही हैं, देखा है जिसने हमारा मिलना-बिछड़ना, रूठना-मनाना, हमारे आसूँ, हमारी हँसी, हमारे गम, हमारी ख़ुशी।
क्या ही छुपा था, इससे जानती है ये हमारे सारे राज़।
फ़िर भी सुनी इसने, मेरी हर एक बात।
ये रात, जो तेरे साथ होने पर भी मेरी साथी बनी।
ये रात जो तेरे बाद भी मेरी साथी होगी।
बस बदल जाओगे तुम, मैं और हमारा प्यार।
_Tanya....
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ए रात हमारी बात तो सुन,
मेरे मन में भरा ये गुब्बार तो चुन।
क्यों अपनो की खुशियों को ढूँढते,
हम उनके ही दुःख की वजह बन जाते हैं?
क्यों प्रेम की चाह में हम,
दर दर ठोकर खाते हैं?
क्यों नही समझते हमे वो ही,
जो हमारे अपने कहलाते हैं?
क्यों नहीं देखते हमारी पीड़ा,
हमे ही कारण बनाते हैं?-